विषम परिस्थिवियोों में भी अपने तन और मन को वकस प्रकाि स्वथि िखा जा सकिा है ? ऐसी ही
एक सकािात्मक सोच को दर्ाािे हुए अपने वमत्र को पत्र लेखन कीवजए ।
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शहडोल. आपसी संवाद का आज भी पत्र-लेखन एक प्रभावी माध्यम है। पत्रों में लिखे हुए शब्द इंसान के जज्बातों को बयां करते हैं। जरूरत इस बात की है कि खतों को जिंदा रखने के लिए और पत्र-लेखन की परंपरा को कायम रखने के लिए सार्थक प्रयास किए जाए। आज भी लोगों को वह दौर याद आता है जब वे घरों में चिठ्ठियों को संभाल कर रखते थे। घर से बाहर आकर पोस्टमैन का इंतजार करते थे। पोस्टमैन से हर कोई अपनी चि_ियों के बारे में पूछते थे, लेकिन आज का माहौल यह है कि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ढेर सारे तकनीकी माध्यम आ चुके हैं। इसके बावजूद ई-मेल और वाट्सअप आज भी पत्रों की जगह नहीं ले पाए हैं और लोग आज भी पत्र लेखन को बढ़ावा देना चाहते है। इस संबंध में पत्रिका ने संभागीय मुख्यालय के ऐसे लोगों से बात की जिन्होंने अपने जमाने में पत्र लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त की थी और पत्र-लेखन को आज भी आगे बढ़ाना चाहते हैं।
पत्र इंतजार के भाव हुए खतम
पहले लोगों को खत का इंतजार होता था, लेकिन अब यह भाव खत्म हो रहा है। पत्र लेखन के प्रति उत्साह पैदा करने के लिए हमें फिर से पत्र लेखन की तरफ जाना होगा। ताकि नई पीढ़ी भी इस रचनात्मक गतिविधि से रूबरू हो सके। पत्र लेखन की परंपरा को बचाए रखने के लिए हम सभी को प्रयास करने होंगे।
राजेन्द्र प्रताप ङ्क्षसह, व्याख्याता
नई पीढ़ी के लिए पत्र लेखन जरूरी
आधुनिकीकरण के युग में बच्चें वाट्सएप और मेल को संवाद का बेहतर तरीका मान रहे है, लेकिन अच्छी हिन्दी और भाव पत्र में आया करते थे। पत्र लेखन के प्रति उत्साह पैदा करने के लिए हमें फि र से लेखन की तरफ जाना होगा। ताकि नई पीढ़ी भी इस रचनात्मक गतिविधि से रूबरू हो सके।
मनोज श्रीवास्तव, शिक्षाविद्
विलुप्त हो गया पत्र लेखन का रोमांच
पहले पत्र लेखन एक रोमांचक गतिविधि होती थी। लेखन का रोमांच अब लुप्त हो गया है। अब आने वाली पीढ़ी को हम न तो ये संस्कार दे पा रहे और न ही पत्र की अहमियत को समझा पा रहे है। पुराने जमाने में लोग पत्र संभालकर रखते थे। अब पत्र लेखन को लोग भूल गए हैं। मैंने भी काफ ी पत्र लिखे हैं।
सुनील कुमार गुप्ता, व्यवसाई
अप्रत्यक्ष लगते हैं संचार माध्यम
पहले चि_ियां जितनी यथार्थ लगती थी, उतना अब वाट्सअप, टेलीग्राम व अन्य इलेक्ट्रानिक्स व मोबाइल फ ोन या अन्य माध्यम अप्रत्यक्ष लगते है। पहले पत्र सही समय पर पहुंचते थे और उनके उत्तर भी आ जाते थे। मुझे किसी से संपर्क तभी वास्तविक लगता था, जब मैं उसे चि_ी लिखता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
राकेश जैन, सामाजिक कार्यकर्ता
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