विषय - गुरु तेग बहादुर जी की वीरता, जीवन और व्यक्तित्व । 1.प्रतियोगिता- स्वरचित कविता(हिंदी/ अंग्रेजी) कक्षा (VI- XII ) तिथि- 30/7/21 तक 2.प्रतियोगिता - निबंध लेखन कक्षा ( V] - X|l) तिथि 16/7/21 तक शब्द संख्या 400 तक (give the answer in English)
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गुरु तेग बहादुर (ग्रेगोरी कैलेण्डर: 1 अप्रैल 1621 – 11 नवम्बर, 1675), (भारांग: 11 चैत्र 1543 - 20 कार्तिक 1597 ) सिखों के नवें गुरु थे जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। उन्होने काश्मीरी पंडितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने उन्हे इस्लाम स्वीकार करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। फिर उसने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धान्त की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।
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"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
—एक सिक्ख स्रोत के मुताबिक़[1]
Gurus1700s.jpg
गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के अन्दर का दृष्य
इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।
आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतन्त्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रान्तिकारी युग पुरुष थे।
Answer:
WAHEGURU JI KA KHALSA
WAHEGURU JI KI FATEH
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