Hindi, asked by bihamjingnu, 4 months ago

विषय: हिन्दी
सत्र 2020-21.
परियोजना कार्य
शीर्षक: (1) जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
(देवसेना का गीत-प्रसंग सहि व्याख्या
(12) काललिया का गीत- प्रसंग सहित यात्या
(2) तुलसीदास का जीवन परयम
(20) भरत राम का प्रेम - पृसँग सहित सारख्या
(22) पद
संग सहित व्याख्या
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प्रस्तुतकर्ता -
नाम:​

Answers

Answered by kanchanpatel38
2

Answer:

1 :- आह! वेदना मिली विदाई!

मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,

मधुकरियों की भीख लुटाई।

छलछल थे संध्या के श्रमकण,

आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण।

मेरी यात्रा पर लेती थीं-

नीरवता अनंत अँगङाई।

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,

गहन-विपिन की तरु-छाया में,

पथिक उनींदी श्रुति में किसने-

यह विहाग की तान उठाई।

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,

रही बचाए फिरती कबकी।

मेरी आशा आह! बावली,

तूने खो दी सकल कमाई।

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,

प्रलय चल रहा अपने पथ पर।

मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,

उससे हारी-होङ लगाई।

लौटा लो यह अपनी थाती

मेरी करुणा हा-हा खाती

विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे

इससे मन की लाज गँवाई।

3 :- गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम लेते ही भगवान श्री राम का स्वरूप सामने आ जाता है। स्वामी तुलसीदास जी ने ही रामचरित मानस की रचना की थी। तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को हुआ था। माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बॉंदा जिले के राजापुर नाम के एक छोटे से गांव में हुआ था। तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दूबे था। तुलसीदास जी का बचपन बड़े ही दुखों में व्यतीत हुआ था। जब तुलसीदास जी बड़े हुए तो उनका विवाह रत्नावली के साथ हो गया। तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे। उन्हें अपने इस प्रे्म के कारण एक बार अपनी पत्नी से अपमानित भी होना पड़ा था। जिसके बारे में कहा जाता है कि " लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।।

अपनी पत्नी की यह बात सुनकर तुलसीदास जी को बड़ा ही दुख हुआ। जिसके बाद उन्होंने प्रभु श्री राम के चरणों में ही अपने जीवन को व्यतीत कर दिया। तुलसीदास जी ने गुरु बाबा नरहरिदास से भी दीक्षा प्राप्त की थी। इनके जीवन का ज्यादातर समय चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ था। तुलसीदास जी ने अपने जीवन पर कई स्थानों का भ्रमण किया था और लोगों को प्रभु श्री राम की महिमा के बारे में बताया था।

तुलसीदास जी ने अनेकों ग्रंथ और कृतियों की रचना की थी जिनमें से रामचरित मानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण इनकी प्रमुख रचनाएं मानी जाती है। तुलसीदास जी ने अपने जीवन में समाज में फैली हुई कुरितियों के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा इन कुरितियों l

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