विषय : स्वरचित लेख (कहानी/कविता/ घटना/ आलेख)
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चाँद को कुछ हो गया है
मैंने देखा था पिछली पूर्णिमा को
तब इसका मुंह टेढ़ा नहीं था
अब हो गया है।
पहले तो यह पूरा था
फिर आधा बचा
अब तो बस थोड़ा रह गया है।
चांद को कुछ हो गया है।
मैं परेशान था कि एक दिन यह चला जाएगा।
किसी ने कहा डांट कर तू पागल है
यह तो अगली पूर्णिमा को फिर पूरा आएगा।
पर वह मेरी परेशानी का कारण ही नहीं समझे
मैं परेशान यूं नहीं था कि
चाँद का मुंह टेढ़ा हो रहा है।
या कि वह घटकर थोड़ा हो रहा है।
या कि धरती पर अंधेरा हो रहा है।
मेरी परेशानी का कारण तो तारे हैं
जिन्हें एक रात बिना चाँद के रहना होगा।
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