वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित
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परिभाषा :- माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाले रस को वात्सल्य रस कहा जाता है। वत्सल नामक भाव जब अपने अनुरूप विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर आस्वाद्य का रूप धारण कर लेता है , तब वहां वात्सल्य रस में परिणति हो जाती है। इस रस के अंतर्गत संतान तथा माता-पिता के बीच के प्रेम को महत्व दिया गया है।
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परिभाषा :- माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाले रस को वात्सल्य रस कहा जाता है। वत्सल नामक भाव जब अपने अनुरूप विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर आस्वाद्य का रूप धारण कर लेता है , तब वहां वात्सल्य रस में परिणति हो जाती है।
यह भाव अपने संतान के क्रियाकलापों को देखकर उत्पन्न होता है।वात्सल्य रस का स्थाई भाव वत्सल रति है। जिसे पुत्र प्रेम , संतान प्रेम आदि भी कहा जा सकता है।
उदाहरण:-
1) किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मचिमय कनक नंद के भांजन बिंब पक्रिये धतत।
बालदसा मुख निरटित जसोदा पुनि पुनि चंदबुलाबन।
अंचरा तर लै सुर के प्रभु को दूध पिलावत। ।
☞︎︎︎उपर्युक्त पंक्ति में कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन है। कृष्ण अपने घुटनों पर चल रहे हैं किलकारियां मार रहे हैं और बाल लीला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
इन सभी क्रियाकलापों को देखकर यशोदा मां आनंदित हो रही हैं , इन सभी लीलाओं ने माता को रिझा दिया है।
वह अपने कान्हा को अचरा तर छुपाकर दूध पिला रही हैं।
झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम
मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।
बच्चे के जन्म के साथ ही माता के स्तनों में पय धारा का प्रवाहित हो जाना स्नेहातिरेक से सुखी छाती में भी दूध उमड़ आना आदि मात्र वात्सल्य की ऐसी विचित्रता है।
Explanation:
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