वातावरण प्रधान ऐतिहासिक कहानियाँ
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भारतीय इतिहास के संधिकाल में कथा सम्राट प्रेमचंद का आविर्भाव हुआ। उस समय गुलाम भारत के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक विसंगतमयी अस्त–व्यस्त परिदृश्य का मानचित्र अंग्रेजी साम्राज्यवादी शोषण-नीतियों से और ज्यादा दयनीय हो बिखर चुका था। यही कारण है कि1905 ई. में रूसी क्रांति के पश्चात् समस्त एशिया के साथ-साथ भारतीय जन आन्दोलन भी जागरूकता व विद्रोह की नई लहरों से उद्वेलित हो उठा। उसी समय उत्तर प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में ‘देशप्रेम ’ नामक छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें पांच छोटी कहानियां संग्रहित थीं। देश प्रेम की भावना इन पृष्ठों में सांसे ले रही थी, लेखक थे प्रेमचंद। प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का सूत्रपात इसी तरह हुआ। जिसका वास्तविक विकास प्रथम महायुद्ध के पश्चात् सन् 1919 से 1959 के बीच हुआ।
साम्राज्यवादी शोषण के साथ-साथ जमींदारों व महाजनों की क्रूर नीतियों से जनसाधारण की चेतना कुंद हो चुकी थी, क्रांति के शोले भड़कने को आतुर थे।
उत्तर प्रदेश के हिन्दू अधिवासी के रूप में प्रेमचंद ने पहले उर्दू में, फिर हिन्दी में लेखन कार्य शुरू किया। दस हजार पृष्ठों में साहित्य रचना कर दो सौ कहानियों व दस उपन्यासों के लेखक बने। जीवन की कठोर वास्तविकता अर्थात जमींदारों , महाजनों के निष्ठुर पंज़ों से मुक्ति की छटपटाहट लिए किसानों का मूक विद्रोह, नौकरीपेशा मध्यम वर्ग की अल्पवेतन में सफेदपोशी की समस्या व आत्मरक्षा के लिए आजीवन प्रयास, अंध-संस्कार, अछूतों की दरिद्रता-ताड़ना, क्रांतिकारी देशभक्तों का उबलता आक्रोश, मानवीय विश्वासों के विरूद्ध धर्म के नाम पर ढोंग, न्याय के नाम पर नीति कुशल घूसखोर विचारकों के कुचक्र, विदेशी शासन के दोष यह सब विषय बने साहित्य लेखन के। इसी विषयगत विविधता व शोषितों के प्रति मानवतावाद तथा उनके लिए आजादी के अधिकार को सर्वमान्य करने हेतु प्रेमचंद के अथक प्रयत्नों ने उन्हें समस्त बंधनों से ऊपर उठाकर अनेक भाषाओं में विभक्त अखिल भारतीय लेखक की मर्यादा में अधिष्ठित किया।
प्रेमचंद के अमूल्य योगदान से आज कहानी विधा विषय, कथ्य स्वरूप, आदर्श व शिल्प की दृष्टि से नये-नये आयामों को आत्मसात करती हुई संतोषजनक पड़ाव तय करती विकास की मंजिल तक पहुंचने में सक्षम हो चुकी है। इनकी सार्थक कहानी कला के विषय में एक आलोचक कथन है, ‘‘ऐतिहासिक, राष्ट्रीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, चरित्र व व्यक्तिगत स्तरों तक फैले प्रेमचंद की भावपक्ष की विविधता व गहनता इसकी कलात्मकता व साहित्यिक महत्ता की द्योतक है। विषय की व्यापकता, चरित्र चित्रण की सूक्ष्मता, सशक्त संवाद, सजीव वातावरण, भाषा की गंभीरता , प्रवाहमयी शैली व लोक संग्रह भावना की दृष्टि से प्रेमचंद की कहानियां अद्वितीय हैं। पंच परमेश्वर, आत्माराम, बड़े घर की बेटी, शतरंज के खिलाड़ी, नशा, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात व कफ़न विश्व की श्रेष्ठ कहानियों की पंक्ति में खड़े होने के योग्य हैं।’’