वितीय संस्थान से आप क्या समझते है? यह कितने प्रकार के होते है
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O वितीय संस्थान से आप क्या समझते है? यह कितने प्रकार के होते है?
► वित्तीय संस्थाओं से तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से होता है, जो मौद्रिक क्षेत्र में देश अथवा राज्य स्तर पर लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साख एवं मुद्रा संबंधी कार्यों का संपादन करती हैं। यह वित्तीय संस्थाएं सरकार द्वारा संपोषित होती हैं और देश के केंद्रीय बैंक के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करती हैं। इन वित्तीय संस्थाओं का कार्य समाज के आर्थिक विकास के लिए आवश्यकता के अनुरूप अल्पकालीन, मध्यकालीन अथवा दीर्घकालीन अथवा उपलब्ध करवाना होता है।
वित्तीय संस्थाएं मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं...
- राष्ट्रीय वित्तीय संस्थायें
- राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थायें
जो संस्थायें राष्ट्रीय स्तर पर वित्त का प्रबंधन संबंधी कार्यों का संपादन करती हैं, उन्हें राष्ट्रीय वित्तीय संस्थायें कहते हैं।
राष्ट्रीय स्तर वित्तीय संस्थाओं के दो प्रमुख अंग होते हैं..
भारतीय मुद्रा बाजार जहाँ अल्पकालीन तथा मध्यकालीन वित्त का प्रबंध किया जाता है।
भारतीय पूंजी बाजार जहाँ दीर्घकालीन वित्त का प्रबंध किया जाता है।
जो संस्थायें राज्यीय और स्थानीय स्तर पर वित्त का प्रबंध जैसे कार्यों का संपादन करती हैं, उन्हे राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थायें कहते हैं। इन
राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएं के भी दो अंग होते हैं...
गैर संस्थागत वित्तीय संस्था के रूप में महाजन, साहूकर, आढ़ती आदि होते हैं, जो गाँव में ग्रामीण लोगों को कर्ज आदि उपलब्ध कराने के परंपरागत साधन के रूप में कार्य करते हैं।
संस्थागत वित्तीय संस्था के अंतर्गत सहकारी बैंक, सहकारी समितियां, भूमि विकास बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक आदि जैसे संस्थागत संस्थाएं होती हैं।
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