वॉटर ब्लॉक बरौली सिस्टम
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बरेली, जेएनएन : बिन पानी सब सून.। सालों पुरानी कहावत सभी ने कई बार कही-सुनी होगी, लेकिन सीखी हरगिज नहीं। रामगंगा तट पर बसी नाथ नगरी में रामनगर और आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के बाद अब फतेहगंज पश्चिमी भी डार्कजोन में शामिल हो गया है। पानी बचाने और कुदरत से मिले वर्षा जल को सहेजने के लिए अभी से कदम न उठाए तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा। स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि भूगर्भ जल विभाग अब लोगों को अलर्ट कर रहा है। बरेली की पहचान सिचित और जल उपलब्धता वाले जनपदों में होती है। धरती और कुदरत की इसी नेमत ने खेती से लेकर वन क्षेत्र को वरदान दिया, लेकिन दुरुपयोग और अतिदोहन के कारण खतरे की घंटी बज चुकी है।
बरेली, जेएनएन : बिन पानी सब सून.। सालों पुरानी कहावत सभी ने कई बार कही-सुनी होगी, लेकिन सीखी हरगिज नहीं। रामगंगा तट पर बसी नाथ नगरी में रामनगर और आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के बाद अब फतेहगंज पश्चिमी भी डार्कजोन में शामिल हो गया है। पानी बचाने और कुदरत से मिले वर्षा जल को सहेजने के लिए अभी से कदम न उठाए तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा। स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि भूगर्भ जल विभाग अब लोगों को अलर्ट कर रहा है। बरेली की पहचान सिचित और जल उपलब्धता वाले जनपदों में होती है। धरती और कुदरत की इसी नेमत ने खेती से लेकर वन क्षेत्र को वरदान दिया, लेकिन दुरुपयोग और अतिदोहन के कारण खतरे की घंटी बज चुकी है।शहर ने उद्योगों की दिशा में कदम बढ़ा तो जंगल कटते चले गए और पानी का अतिदोहन शुरू हुआ। महज दो दशक में ही जिले के रामनगर व आंवला विकासखंड खतरे वाले क्षेत्र में आ गए। रामनगर के रेतीखेड़ा में भूजलस्तर करीब 70 से 85 फीट नीचे पहुंच चुका है। शहरी क्षेत्र में बिहारीपुर, कोतवाली, कुतुबखाना, कोहाड़ापीर, सिविल लाइंस क्षेत्र पानी के संकट से जूझने लगे हैं। कभी जल का स्रोत रहीं अरिल, देवरनिया और पीलिया नदी अपने ही अस्तित्व की तलाश में हैं।
बरेली, जेएनएन : बिन पानी सब सून.। सालों पुरानी कहावत सभी ने कई बार कही-सुनी होगी, लेकिन सीखी हरगिज नहीं। रामगंगा तट पर बसी नाथ नगरी में रामनगर और आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के बाद अब फतेहगंज पश्चिमी भी डार्कजोन में शामिल हो गया है। पानी बचाने और कुदरत से मिले वर्षा जल को सहेजने के लिए अभी से कदम न उठाए तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा। स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि भूगर्भ जल विभाग अब लोगों को अलर्ट कर रहा है। बरेली की पहचान सिचित और जल उपलब्धता वाले जनपदों में होती है। धरती और कुदरत की इसी नेमत ने खेती से लेकर वन क्षेत्र को वरदान दिया, लेकिन दुरुपयोग और अतिदोहन के कारण खतरे की घंटी बज चुकी है।शहर ने उद्योगों की दिशा में कदम बढ़ा तो जंगल कटते चले गए और पानी का अतिदोहन शुरू हुआ। महज दो दशक में ही जिले के रामनगर व आंवला विकासखंड खतरे वाले क्षेत्र में आ गए। रामनगर के रेतीखेड़ा में भूजलस्तर करीब 70 से 85 फीट नीचे पहुंच चुका है। शहरी क्षेत्र में बिहारीपुर, कोतवाली, कुतुबखाना, कोहाड़ापीर, सिविल लाइंस क्षेत्र पानी के संकट से जूझने लगे हैं। कभी जल का स्रोत रहीं अरिल, देवरनिया और पीलिया नदी अपने ही अस्तित्व की तलाश में हैं।शहरी इलाकों में सबमर्सिबल और आरओ बने सबब
बरेली, जेएनएन : बिन पानी सब सून.। सालों पुरानी कहावत सभी ने कई बार कही-सुनी होगी, लेकिन सीखी हरगिज नहीं। रामगंगा तट पर बसी नाथ नगरी में रामनगर और आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के बाद अब फतेहगंज पश्चिमी भी डार्कजोन में शामिल हो गया है। पानी बचाने और कुदरत से मिले वर्षा जल को सहेजने के लिए अभी से कदम न उठाए तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा। स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि भूगर्भ जल विभाग अब लोगों को अलर्ट कर रहा है। बरेली की पहचान सिचित और जल उपलब्धता वाले जनपदों में होती है। धरती और कुदरत की इसी नेमत ने खेती से लेकर वन क्षेत्र को वरदान दिया, लेकिन दुरुपयोग और अतिदोहन के कारण खतरे की घंटी बज चुकी है।शहर ने उद्योगों की दिशा में कदम बढ़ा तो जंगल कटते चले गए और पानी का अतिदोहन शुरू हुआ। महज दो दशक में ही जिले के रामनगर व आंवला विकासखंड खतरे वाले क्षेत्र में आ गए। रामनगर के रेतीखेड़ा में भूजलस्तर करीब 70 से 85 फीट नीचे पहुंच चुका है। शहरी क्षेत्र में बिहारीपुर, कोतवाली, कुतुबखाना, कोहाड़ापीर, सिविल लाइंस क्षेत्र पानी के संकट से जूझने लगे हैं। कभी जल का स्रोत रहीं अरिल, देवरनिया और पीलिया नदी अपने ही अस्तित्व की तलाश में हैं।शहरी इलाकों में सबमर्सिबल और आरओ बने सबबशहरी इलाकों का भूजल स्तर पिछले दो दशकों में तेजी से गिरा। जानकार बताते हैं कि सबमर्सिबल के जरिये जलदोहन इसकी प्रमुख वजह है। आज हर घर में शुद्ध पानी के लिए आरओ लगा है, जो एक लीटर शुद्ध पानी के नाम पर सात लीटर जल बर्बाद करता है। आरओ का वेस्टेज पाइप अधिकांश लोग सीधे वाशबेसिन से नाली में पहुंचाते हैं। जबकि शायद अधिकांश जगह आरओ की जरूरत भी नहीं। जानकारों के मुताबिक आरओ की जरूरत वहां है, जहां टीडीएस 500 के करीब हो। जबकि यहां अधिकांश जग
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