वैदिक काल में लोगों की सामाजिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
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वैदिककालीन सामाजिक जीवन
ऋग्वैदिक समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल होती थी। ऋग्वेद में 'कुल' शब्द का उल्लेख नहीं है। परिवार के लिए 'गृह' शब्द का प्रयुक्त हुआ है। कई परिवार मिलकर ग्राम या गोत्र तथा कई ग्राम मिलकर विश का निर्माण एवं कई विश मिलकर जन का निर्माण करते थे। ऋग्वेद में जन शब्द लगभग 275 तथा विश शब्द 170 बार प्रयुक्त हुआ है।
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक समाज था। पिता ही परिवार का मुखिया होता था। ऋग्वेद के कुछ उल्लेखों से पिता के असीमित अधिकारों की पुष्टि होती है। ऋजाश्व के उल्लेख से पता चलता है कि उसके पिता ने एक मादा भेड़ के लिए सौ भेड़ों का वध कर देने के कारण उसे अन्धा बना दिया था। वरूणसूक्त के शुनः शेष के आख्यान से ज्ञात होता है कि पिता अपनी सन्तान को बेच सकता था। किन्तु उद्धरणों से यह तात्पर्य कदापि नहीं निकाला जाना चाहिए कि पिता-पुत्र के संबंध कटुतापूर्ण थे। इसे अपवादस्वरूप ही समझा जाना चाहिए। पुत्र प्राप्ति हेतु देवताओं से कामना की जाती थी और परिवार संयुक्त होता था।