विदुर आदि शब्द अनयाय
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विदुर संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो जानता हो । जानकर । वेत्ता । ज्ञाता । २. पंडित । ज्ञानी । ३. कौरवों के सुप्रसिद्ध मंत्री । विशेष—यह राजनीति, धर्मनीति और अर्थनीति में बहुत निपुण थे और धर्म के अवतार माने जाते हैं । महाभारत में कथा है कि जब सत्यवती ने अपनी पु्त्रवधू अंबिका को दूसरी बार कृष्णद्वैपायन के साथ नियोग करने की आज्ञा दी, तब उसने कृष्णद्वैपायन की आकृति आदि से भयभीत होकर एक सुंदरी दासी को अपने कपड़े आदि पहनाकर उनके पास भेज दिया, जिससे विदुर का जन्म हुआ । ये बहुत बड़े पंडित, बुद्धिमान्, शांत और दूरदर्शी थे; और पांडवों के बहुत बड़े पक्षपाती थे । पहले ये राजा पांडु के मंत्री थे; और इसी लिये पीछे से अनेक अवसरों पर इन्होंने पांडवों की भारी भारी विपत्तियों में रक्षा की थी । जतुगृह के जलने के समय भी इन्हीं के परामर्श से पांडवों की जान बची थी । ये धृतराष्ट्र के छोटे भाई और मंत्री भी थे । जिस समय दुर्योधन के बहुत कहने पर धृतराष्ट्र ने इनसे जूए के संबंध में संमति माँगी थी उस समय इन्होंने उन्हें बहुत रोका और समझाया था । पांडवों के वन जाने पर ये दुर्योधन के पास रहते थे । महाभारत का युद्ध आरभ होने से पहले इन्होंने धृतराष्ट्र को रात भर अनेक प्रकार के अच्छे अच्छे उपदेश देकर युद्ध रुकवाना चाहा था; पर इसमें भी इन्हें सफलता नहीं हुई । युद्ध में इन्होंने पांडवों का पक्ष ग्रहण किया था । महाभारत के युद्ध के उपरांत जब पांडवों का राज्य हुआ, तब भी ये बहुत दिनों तक मंत्री के पद पर थे । पर पीछे से वन में चले गए । वहाँ राजा युधिष्टिर से एक बार इनकी भेंट हुई थी । वहीं बहुत दिनों तक घोर तपस्या करने के उपरांत इनका परलोकवास हुआ था । नीति की प्रसिद्ध पुस्तक 'विदुरनीति' या 'विदुर प्रजागर' इन्हीं की रचित मानी जाती है (जो महाभारत के पाँचवें पर्व में ३३ वें अध्याय से ४० वें तक है। विदुर २ वि० चतुर । जानकार । कुशल ।