विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहीं, पर अपनी भाषा सर्वोपरी है'- इस कथन को पल्लवित करें।
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विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहीं, पर अपनी भाषा सर्वोपरि है
पल्लवन...
विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहीं, पर अपनी भाषा सर्वोपरि है, क्योंकि अपनी मातृभाषा हमारे मन से जुड़ी होती है। हमारी मातृभाषा ही होती है, जो हम सबसे पहले अपनाते हैं, जिसकी सहायता से हम बोलना सीखते हैं।
विदेशी भाषा से हम केवल अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन मातृभाषा से हम अपने भावों को व्यक्त करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी सरल और सहज और मौलिक अभिव्यक्ति केवल अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही सबसे अच्छी तरह से व्यक्त कर सकता है। विदेशी भाषा में हम वो भाव नही ला सकते जो अपनी मातृभाषा में लाते हैं।
अगर हमारी मातृभाषा इतनी समृद्ध है, अच्छी खासी लोकप्रिय हैं, जो हमें अपनी मातृभाषा की जगह विदेशी भाषा को प्राथमिकता देने का क्या औचित्य। अगर हमारे रोजगार आदि के संबंध में कोई भाषा सहायक सिद्ध हो रही है तो हम उसे रोजगार तक ही सीमित रखें। हम उस भाषा को अन्य रोजगार कौशल की तरह एक कौशल के रूप में लें, उसे अपने जीवन में ढाले नहीं।
आजकल अंग्रेजी भाषा का बड़ा जोर है, लोग बड़े शान से अंग्रेजी सीखते हैं। लोग कहते हैं कि यह रोजगार उन्मुख की भाषा है, इसके बिना रोजगार मिलना कठिन हो जाता है। ठीक है, लोग बड़े शान से अंग्रेजी सीखते हैं, रोजगार पाते हैं। अच्छी बात है। लेकिन ये गलत तब हो जाता है, जब लोग अपने दैनिक जीवन में, अपने घर, अपने माता-पिता, बच्चों, आदि से भी अंग्रेजी में बात करने लगते हैं। अपनी मातृभाषा को भूल जाते हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।
अगर अंग्रेजी हमें रोजगार में सहायक है तो हम अपने कार्यालय में अंग्रेजी जहां-जहां उपयोगी उपयोग करें। लेकिन अगर हम उसे अपने दैनिक जीवन व्यवहार में ले आए और अपने घरवालों से भी अंग्रेजी में बात कर दें और अपनी मातृभाषा का तिरस्कार करना शुरू कर दें तो यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। इसलिए विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना या किसी भी अन्य भाषा को सीखना बुरी बात नहीं है, लेकिन अपनी मातृभाषा अपनी मातृभाषा ही होती है। वह अपनी माँ के समान है, उसका सम्मान करना एक अलग विषय है।
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Answer:
hi se je Jo hmko di di महिन