Hindi, asked by dipalipalaye71, 2 months ago

"विदेशी भाषांओं के नाम" अंतरजाल के सहायता से लिखो | ​

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Answered by ankitdwivediii
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Answered by abhinav8737
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अंग्रेजी और विदेशी भाषाओ का केन्द्रीय संस्थान

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इस लेख में सम्बंधित अथवा बाहरी कड़ियाँ अनुभाग में सन्दर्भों की एक सूची है, लेकिन इनलाइन उद्धरणों की कमी के कारण इसके स्रोत स्पष्ट नहीं हैं।

अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (EFLU) (जिसे पहले CIEFL के नाम से जाना जाता था) भारत में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। यह उच्चतर शिक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर का विश्वविद्यालय है। इसका मुख्य परिसर में हैदराबाद में स्थित है। हालांकि लखनऊ और शिलौंग में भी इसके परिसर हैं।

अंग्रेजी और विदेशी भाषाओ का केन्द्रीय संस्थान English and Foreign Languages University

स्थापित

1972

प्रकार:

सार्वजनिक

अवस्थिति:

परिसर:

शहरी

सम्बन्धन:

यूजीसी

जालपृष्ठ:

Official site

ईएफएलयू (EFLU) में अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के साथ उनके साहित्य के बारे में भी पढ़ाया जाता है। साथ ही ये इन भाषाओं से जुड़े अनुसंधान (रिसर्च), शिक्षकों के प्रशिक्षण, प्रशिक्षण सामग्री को मुहैया कराने का भी काम करता है, एक तरह से कहा जाए तो ईएफएलयू सेवाओं का शिक्षा विस्तार है जिसका मुख्य उदेश्य भारत में अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं की पढ़ाई के स्तर को सुधारना है। ये देश का अकेला ऐसा शिक्षण संस्थान है जो पूरी तरह से अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं की पढ़ाई को लेकर प्रतिबद्ध है।

ईन वर्षोमें ईएफएलयु (EFLU) ने विभिन्न विदेशी भाषाओं की पढाई शरू की है जिनकी काफी माग थी। यहां अंग्रेजी, अरबी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, रशियन, स्पैनिश, पोर्टेगीज, पर्सियन, तुर्की, इटालियन, चीनी, कोरियन और हिंदी जैसी भाषाओं की पढ़ाई होती है।

ईएफएलयु (EFLU) एम.ए. (M.A) के साथ उस विषय में एक सांस्कृतिक अध्ययन पाठ्यक्रम शुरू करने वाला देश का पहला शिक्षण संस्थान भी है। ईएफएलयु (EFLU) समाजशास्त्र, फिल्म स्टूडियो, मानवशास्त्र, इतिहास और साहित्य जैसे क्षेत्र, जहां ईन शिक्षा शाखाओं को पृथक करना कठिन हो जाता है, एसे क्षत्रोमें एम.फिल. (M.Phil) और पीएच.डी. (Ph.D.) भी कराता है। 2006 में भारतीय संसद ने इसे केन्द्रीय युनिर्वसिटी का दर्जा दे दिया। [1] 3 अगस्त 2007 को इसका दुबारा नामकरण किया गया और इसे इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज विश्वविद्यालय (ईएफएलयू) (EFLU) नाम दिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्लाविक स्टडी डिपार्टमेंट के अभय मौर्य इसके पहले वाइस चांसलर बनें। [2]

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