विद्वानों का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं । इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी-बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है चाहे उस स्वतंत्रता में
अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नाते ही से उत्पन्न हो । यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती
है और अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है।
युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं । उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि
वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे क्योंकि ये बातें आत्ममर्यादा के लिए आवश्यक हैं । यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है हमारा शरीर, हमारी
आत्मा, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा, हमारे बहुत से अवगुण और थोड़े गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते है कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए।
नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है, जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है, जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण वह आगे बढ़ने के समय भी पीछे रहता है
और अवसर पड़ने पर घट पट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह
आप निकालती है।
1) मर्यादापूर्वक जीने के लिए किन गुणों का होना अनिवार्य है और क्यों? (2 mark)
i) नम्रता और दब्बूपन में क्या अंतर है? (2 mark)
iii) दब्बूपन व्यक्ति के विकास में किस प्रकार बाधक होता है? स्पष्ट कीजिए । (2 mark)
iv) आत्ममर्यादा के लिए कौन सी बातें आवश्यक हैं? इससे व्यक्ति को क्या लाभ होता है? (2 mark)
v) आत्मा को नम्र रखने की आवश्यकता क्यों होती है? (1 mark)
Rev
vi) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए । (1 mark)
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1.(III)
2.(Iv)
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उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
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