विद्वेष उपसर्ग और मूल शब्द कया है
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उपसर्ग’ शब्द ‘उप’ + ‘सर्ग’ शब्द के मेल से बना है, जिसमें ‘सर्ग’ मूल शब्द है, जिसका अर्थ होता है ग्रंथ का अध्याय जोड़ना, रचना, निर्माण करना आदि। अतः ‘सर्ग’ मूल शब्द से पूर्व उप’ शब्दांश लगने से उसका अर्थ हुआ पहले जोड़ना। इस प्रकार मूल शब्दों के पहले अथवा आगे जो शब्दांश लगाए जाते हैं। वे उपसर्ग कहलाते हैं।
जो शब्दांश शब्द से पहले लगकर उसके अर्थ को बदल देते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं; जैसे
स्व + तंत्र = स्वतंत्र,
निः + बल = निर्बल
स + पूत = सपूत,
सु + कुमार = सुकुमार
उपसर्ग के भेद – हिंदी भाषा में चार प्रकार के उपसर्ग प्रचलित हैं।
उपसर्ग
हिंदी के उपसर्ग
संस्कृत के उपसर्ग
उर्दू के उपसर्ग
संस्कृत के अव्यय
1. हिंदी के उपसर्ग – हिंदी में जो उपसर्ग मिलते हैं, वे संस्कृत हिंदी तथा उर्दू भाषा के हैं।
उपसर्गअर्थशब्दरूपऔ/अवहीनता, रहितऔघट, अवनति, अवगुण, अवतारअन्अभाव, नहींअनजान, अनपढ़, अनादि, अनुपस्थित, अनमोलअधआधाअधपका, अधमरा, अधखिलाकुबुराकुसंगति, कुपथ, कुकर्म, कुचाल, कुमति, कुरूप, कुचक्रसुसुंदर, अच्छासुगंध, सुवास, सुजान, सुघड़परदूसरा, दूसरी पीढ़ीपरोपकार, परस्त्री, परपुरु ष, परलोक, परदादी, परनानी, परपिताभरपूराभरपेट, भरपूर, भरसकअधआधाअधखिला, अधजला, अधकचरातितीनतिगुना, तिपाई, तिराहा, तिपहियाचौचारचौराहा, चौगुना, चौमासा, चौतरफा, चौमुखीनिबिना, रहितनिछथा, निहाल, निपट, निठल्ला
2. संस्कृत के उपसर्ग
उपसर्गअर्थशब्दरूपअभिसामने, पास, ओरअभिमान, अभिलाषा, अभिनेता, अभिनय, अभिव्यक्त, अभिशापअवबुरा, हीनअवनति, अवगुण, अवशेषअनुसमान, पीछेअनुरूप, अनुज, अनुचर, अनुकरणअतिअधिकअत्यधिक, अत्युत्तम, अत्यंतअनअभावअनादि, अनंत, अनेक, अनिच्छाउद्ऊपर, उत्कर्षउद्धार, उद्भव, उद्देश्य, उद्घाटन, उद्घोषनिरनिषेध, रहित, बिनानिर्बल, निर्भय, निरपराध, निर्दोषपराविपरीत, उलटी, पीछेपराजय, पराधीन, पराक्रम, परस्त, परामर्शविविशेष, अलग, अभावविहीन, विज्ञान, विमाता, विनय, विभाग, विशेष, विदेशसम्पूर्णता, सुंदर, साथ/अच्छासंयोग, सम्मान, संतोष, संविधान, संचय, संशय
Answer:
प्र + हार = प्रहार, 'हार' शब्द का अर्थ है पराजय। परंतु इसी शब्द के आगे 'प्र' शब्दांश को जोड़ने से नया शब्द बनेगा - 'प्रहार' (प्र + हार) जिसका अर्थ है चोट करना।
आ + हार = आहार, 'आ' जोड़ने से आहार (भोजन)
सम् + हार = संहार (विनाश)
वि' + हार = विहार' (घूमना)