विद्या के महत्व पर निबंध पॉइंट संस्कृत और हिंदी में लिखिए
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in sanskrit
vidya ke mahatv
अस्माकं साहित्ये विद्याया महान् महिमा श्रूयते । विद्या एव मनुष्यस्य पाश्र्वे ईदृशं तत्त्वं येन तस्मिन् वैशिष्ट्यं सम्पद्यते, स च पशुभिभिन्नः पृथगेव दृश्यते । यदा शिशुः जायते, तदा सः पशुतुल्य एव भवति, किन्तु पश्चात् विद्यया तस्य द्वितीयं जन्म इव भवति । तदा सः अधिकतरं शोभते । येषां विद्या न भवति ते वस्त्राभूषणालङ्कृता अपि सभामध्ये मूर्खताकारणात् न शोभन्ते, ये पुनः विद्यावन्तो भवन्ति, ते सर्वत्र शोभन्ते, पूज्यन्ते, सम्मान्यन्ते च । अत एवोच्यते स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् । सर्वत्र पूज्यते । राज्ञः मानः धनैश्वर्यकारणात् केवलं स्वराज्ये भवति परन्तु विद्वत्तायाः सर्वत्र सम्मानः भवति । यदि कश्चिद् राजा विद्वांसं स्वदेशात् निष्कासयति, तथापि सः देशान्तरं गत्वा स्वविद्वत्तया ख्याति लभते ।
अस्मिन् संसारे मनुष्यः विद्ययैव सभ्यं वाग्व्यवहारं जानाति । वाक्चातुर्येण सः सर्वेषां मनांसि जेतुं समर्थोऽस्ति । विद्यैव तादृशं धनं यत् केनापि चोरयितुं न शक्यते । अस्य धनस्य तु प्रवृत्तिः विपरीता एव। अन्यधनस्य तु दानेन क्षयो भवति परन्तु विद्या रूपस्य धनस्य दानेन वृद्धिः भवति । यदि वयमन्यमध्यापयाम, स्तदा ऽ स्माकं ज्ञानं वर्धते एव । संकटकालेऽपि विद्या नरं रक्षति विद्यया मनुष्यः संसारस्य वास्तविक तत्त्वं जानाति महान्ति कष्टानि च हसन्नेव सहते । विद्यैवास्माकं मित्रम् । वयं कुत्रापि स्याम, अन्यः कश्चिदस्मान् न जानीयात्, परन्तु स्वविद्यया 5 स्माकं कालः गच्छति, अस्माकं विद्यया प्रभाविताश्चान्येऽप्यस्माकं मित्राणि भवन्ति । मनुष्यः विद्ययैव चिन्ताक्षणेष्वपि शान्तिं लभते । विद्या मनुष्ये धैर्य सञ्चारयति, सा तस्य हृदये अहिंसास्तेयत्यागादिभावान् जनयति येन सः स्वार्थं त्यक्त्वा जनहितमपि वितनोति । विद्यावन्त एवं जना नेतारो भवन्ति, अन्येभ्यः साधुमार्ग प्रदर्शयन्ति। भर्तृहरिणा एकस्मिन् पद्ये विद्याया व्यापकं महत्त्वमेवं वर्च्यते-
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकरी यशस्सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता ।
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
in hindi
vidya ke mahatv
विद्या का महत्व प्रस्तावना :
विद्या क्या है? कैसी है? ये सब सवाल निरर्थक हैं क्योंकि विद्या से ही मनुष्य अच्छे-बुरे में अन्तर कर पाता है, भला-बुरा जान पाता है। किसी भी वस्तु का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना ही तो विद्या है। विद्याहीन मनुष्य जड़, मूर्ख व दानव होता है तथा विद्या से मनुष्य चेतन, जागरूक तथा देवता बन जाता है। जो व्यक्ति जिस कला को जानता है, वह उसका प्रकांड पण्डित बन जाता है तभी तो लकड़ी की विद्या जानने वाला बढ़ई तथा सिलाई की विद्या जानने वाला दर्जी कहलाता है।
विद्या के अनगिनत गुण :
विद्या मनुष्य की असली पूंजी है तथा वास्तविक श्रृंगार है। विद्या से ही मनुष्य असली सम्पत्ति का मालिक बनता है। विद्यावान व्यक्ति विनयी हो जाता है, विनय से योग्यता आ जाती है तथा योग्यता से धन प्राप्त कर लेता है तथा इसके पश्चात् मनुष्य को सच्चे मख तथा शान्ति की प्राप्ति होती है।
विद्या ऐसा धन है जिसे जितना भी बाँटो उतना ही बढ़ता है, इसे कोई चुरा नहीं सकता, डाकू लूट नहीं सकता, भाई बाँट नहीं सकता, न पानी गला सकता है और न ही आग से जल सकती है।
विद्यावान मनुष्य की विशेषताएँ :
संसार के हर व्यक्ति को सम्मान, यश, ख्याति, धन, मान सब कुछ विद्या से ही प्राप्त होती है। संसार में जितने भी महान तथा यशस्वी व्यक्ति हए हैं, वे विद्या से ही महान बने हैं। विद्यावान व्यक्ति अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण सदा ही प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करता है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए, देश के लिए, घर के लिए, परिवार के लिए, स्वयं के लिए कलंकहीन जीवन जीता है।
कभी भी ऐसा इंसान न तो भूखा रहता है न ही किसी को भूखा रखता है क्योंकि उसके पास विद्यारूपी धन होता है।
उपसंहार :
वास्तव में विद्या हमारे लिए कल्पवृक्ष के समान है। विद्या ही हमारी जीवन रूपी नैया को मार उतार सकती है। विद्या के महत्व को सभी को समझना चाहिए तथा विद्या के प्रचार के लिए तन, मन, धन से जुट जाना चाहिए और देश से अज्ञानता का अंधकार दूर करना चाहिए।