विद्यालय किकेट टीम का कप्तान चुने जाने का समाचार बड़ी बहन को देते हुए पत्र लिखिए
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मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने निकट संबंधियों का दुख-सुख जानने का इच्छुक रहता है। इसके लिए वह पत्रों का सहारा लेता आया है। पत्र-लेखन एक विशिष्ट कला है। यह हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सरल और सशक्त माध्यम है। यह लेखन की अन्य विधाओं से भिन्न है क्योंकि पत्र-लेखन किसी मित्र, निकट संबंधी, अधिकारी, कर्मचारी या संस्था प्रमुख को संबोधित करके लिखा जाता है। इसमें लेखक और पाठक के बीच कुछ-न-कुछ संबंध भी रहता है।
पत्र-लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
सरलता-पत्र की भाषा सरल, स्पष्ट तथा बोधगम्य होनी चाहिए जिससे पाठक पत्र का उद्देश्य एवं भाव स्पष्ट रूप से समझ सके। पत्र में जटिल और अस्पष्ट भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए।
संक्षिप्तता–पत्र लिखते समय यह प्रयास होना चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट कर सकें। ज़्यादा लंबे पत्रों में नीरसता प्रकट होने लगती है।
शिष्टता-पत्र-लेखन में सदैव शिष्टता बनाए रखनी चाहिए। कटु बातों को लिखते समय शिष्ट एवं मर्यादित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
निश्चयात्मकता-पत्र-लेखन में अपनी बातों में निश्चितता बनाए रखनी चाहिए। बातों में दुविधा या हिचक से बचना चाहिए।
पुनरुक्तिहीनता-पत्र में एक ही बात की पुनरुक्ति से पत्र की प्रभावहीनता बढ़ती जाती है।
पत्र के आवश्यक अंग-पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं-
भेजने वाले का पता-सामान्यतया पत्रों में बाईं ओर किनारे पर पत्र लेखक अपना पता लिखता है, ताकि पत्रोत्तर में सुविधा हो।
पत्र भेजने की तिथि-पते के ठीक नीचे पत्र लिखने की तिथि लिखी जाती है। इसे 28.8.20XX या 28 अगस्त, 20XX के रूप में लिखा जाता है।
संबोधन एवं अभिवादन-तिथि के नीचे पत्र पाने वाले की उम्र, आयु, पद का ध्यान रखते हुए संबोधन लिखा जाता है। मित्रों, निकट संबंधियों के लिए अलग तथा अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए भिन्न संबोधन लिखा जाता है।
विषयोल्लेख-इसके अंतर्गत पत्र के विषय का उल्लेख किया जाता है; जैसे-दो दिन के अवकाश के संबंध में, दिनोंदिन, बढ़ती महँगाई के विरुद्ध आवश्यक कदम उठाने के संबंध में आदि।
विषय सामग्री-यह पत्र का मुख्य भाग है। इसमें अपनी बातें स्पष्ट रूप में लिखी जाती हैं।
समापन–पत्र के अंत में बाईं ओर पत्र पाने वाले से अपने संबंधों का उल्लेख किया जाता है। इसमें प्रायः भवदीय/आपका लिखकर अपना नाम लिखा जाता है।
पत्र पाने वाले का पता-पत्र की समाप्ति पर भेजने से पूर्व पोस्टकार्ड या लिफ़ाफ़े पर पत्र पाने वाले का पता लिखा जाता है।
पत्र के प्रकार-पत्र को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है-
औपचारिक पत्र
अनौपचारिक पत्र (पारिवारिक पत्र)
दसवीं के ‘बी’ पाठ्यक्रम में औपचारिक पत्र ही शामिल किए गए हैं।
1. औपचारिक पत्र-ये पत्र उन लोगों को लिखे जाते हैं, जिनसे हमारा निकट संबंध या रिश्ता नहीं होता है। विद्यालय के
प्रधानाचार्य, विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों, कार्यालयों के अलावा अधिकारियों एवं कर्मचारियों को लिखे गए पत्र इसी श्रेणी में आते हैं। इन पत्रों को निम्नलिखित उपभागों में बाँटा जा सकता है-
प्रार्थना-पत्र-ये पत्र प्रधानाचार्य को किसी कार्यालय के अधिकारी या संस्था प्रमुख को लिखे जाते हैं। इसमें किसी काम को करवाने की प्रार्थना की जाती है।
आवेदन-पत्र-सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं में नौकरी पाने के लिए लिखे गए पत्रों को आवेदन-पत्र कहा जाता है। इनमें अपनी शैक्षिक एवं व्यावसायिक योग्यता का उल्लेख करके अपनी कार्य निपुणता की पुष्टि की जाती है।
शिकायती पत्र-व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक समस्या का निराकरण करवाने हेतु लिखे गए पत्रों को शिकायती पत्र कहा जाता है। बिजली की अघोषित कटौती, पार्क पर अवैध कब्जा, टूटी सड़कों की मरम्मत के निराकरण के लिए लिखित पत्र इसी श्रेणी में आते हैं।
संपादकीय पत्र-प्रसिद्ध समाचार-पत्रों के संपादकों को लिखे गए पत्र इसी श्रेणी में आते हैं। इसमें जनहित की समस्याओं की ओर सरकार एवं संबंधित अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए समाचार-पत्र में प्रकाशन हेतु अनुरोध किया जाता है।
व्यावसायिक पत्र-व्यावसायिक कार्यों के लिए लिखे गए पत्रों को व्यावसायिक पत्र कहा जाता है। पुस्तकें मँगवाना, किसी माल की आपूर्ति न होने की शिकायत आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
अन्य पत्र-इसके अंतर्गत बधाई, निमंत्रण पत्र आदि आते हैं।
2. अनौपचारिक पत्र-अनौपचारिक पत्र पारिवारिक पत्र कहलाते हैं।
अनौपचारिक पत्र के संबंध में दी गई जानकारी छात्रों के ज्ञानवर्धन मात्र के लिए दी गई है।
ये पत्र रिश्तेदारों, सगे-संबंधियों और मित्रों को लिखे जाते हैं। पत्र लिखने वाला पत्र पाने वाले से भली प्रकार परिचित होता है। माता-पिता को, पुत्र को, मित्र को, चाचा-मामा आदि रिश्तेदारों को लिखे गए पत्र इसी वर्ग में आते हैं। इन पत्रों में आत्मीयता झलकती रहती है।
संबोधन, अभिवादन तथा पत्र के अंत में लिखे जाने वाले शब्दों के कुछ उदाहरण-
सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय
नव सृजन पब्लिक
स्कूल सोहना रोड, गुड़गाँव
विषय-आर्थिक सहायता पाने के संबंध में
मान्यवर
विनम्र निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता जी जिस फैक्ट्री में काम करते थे, वह सीलिंग के कारण बंद हो गई है जिससे वे बेरोज़गार हो गए हैं। इस स्थिति में वे मेरा मासिक शुल्क, छात्रावास शुल्क, सरदी की ड्रेस आदि दिलवाने में असमर्थ हैं। मैं अपनी कक्षा में गतवर्ष प्रथम आया था। इसके अलावा मैं विद्यालयी क्रिकेट टीम का कप्तान भी हूँ।
अतः आपसे प्रार्थना है कि मुझे विद्यालय से आर्थिक सहायता प्रदान करने की कृपा करें ताकि मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ। आपकी इस कृपा के लिए मैं आपका आभारी रहूँगा।