Hindi, asked by praveen95rao, 5 hours ago

विद्यालय के वार्षिकोत्सव का वर्णन दो दिवसीय डायरी में कीजिए?​

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Answered by rajajan9408
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Answer:

वार्षिकोत्सव का शाब्दिक अर्थ है- वर्ष के अंत मे होने वाला उत्सव। सभी उत्सवो पर्वों के समान विद्यालय का भी वार्षिक उत्सव होता है। इससे हमें पता चलता है, कि हमारे विद्यालय को बने कितने साल हो गए है। अर्थात इसका पराम्भ कब से हुआ है। और वार्षिकोत्सव मनाते हुए कितना समय हो गया है।

प्रतेक विद्यालय के वार्षिकोत्सव के समान मेरे विद्यालय का भी वार्षिकोत्सव बसंत पंचमी के शुरुआत पर संम्पन्न होता है। इस उत्सव को विधिवत सम्पन्न करने के लिए हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य ओर प्रबंधक लग जाते है। तैयारी में इसके लिए इन दोनों की देखरेख में एक माह पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। इसमें विद्यालय के सभी अधयापक छात्र ओर कर्मचारी अपना पूरा-पूरा योगदान देते है।

हमारे प्रधानचार्य ने एक बैठक करवाई जिसमे सभी को ये बताया कि जब तक वार्षिकोत्सव का माहौल रहेगा तब तक कोई पड़ाई नहीं होगी।और वार्षिकोत्सव के बाद एक हफ्ते तक स्कूल की छुट्टी दे दी जाएंगी ताकि सभी आराम कर सके। लेकिन उससे पहले उन्होंने वार्षिकोत्सव पर होने वाले कार्यक्रम का विवरण प्रस्तुत किया। कला संस्कृति अंतर्गत कला प्रदर्शनी ओर संस्कृति कार्यक्रम के अंतर्गत खेलकूद, दौड़ आदि की प्रतियोगिता का आयोजन किया जायेगा। वार्षिकोत्सव के दौरान नाटक, नृत्य, गाने, आदि कार्यक्रम का भी आयोजन होगा उसका उल्लेख प्रधानचार्य जी ने किया।

हमारे कला संस्कृति के अध्यापक ने यह भी उल्लेख की विद्यालय का वार्षिकोत्सव बसंतपंचमी को “सरस्वती पूजन”के पावन वेला में हर साल की तरह इस साल भी लगातार तीन दिनो तक चलते हुए इस दिन समाप्त होंगा।उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस वार्षिकोत्सव के अध्य्क्ष प्रदेश के शिक्षा मंत्री और मुख्य अतिथि प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल महोदय है।उन्होंने संचालक के रूप में मेरे कक्षाअध्य्क्ष ओर सहायक प्रबंधक के रूप में क्रीडा अध्यापक का उल्लेख किया।

विद्यालय के वार्षिकोत्सव का शुभारंभ हमारे प्रधानचार्य ओर प्रबंधक महोदय की देख रेख में विभिन्न प्रकार के खेल-कूदो, दौड़ आदि कार्यक्रम से हुआ। उसी दिन कविता, कहानी, लेख ,वाचन आदि प्रतियोगी कार्यक्रम हुए। इन सभी कार्यकर्म में भाग लेने वाले विजयी उम्मीदवारों का नाम पुरस्कार के लिए चयन किया गया।

वार्षिकोत्सव के दूसरे ओर तीसरे दिन नाटक, संगीत, वादन, आदि प्रतियोगिता आयोजित की गई । इनमें भी विजयी उम्मीदवारों के नाम पुरुस्कार के लिए चुना गया।

हर साल की तरह इस साल भी हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सवक के अंतिम दीन का शुभारम्भ सरस्वती पूजा के बाद दिन के 11 बजे शुरू हुआ। सभा का संचालन हमारे कक्षा अध्यक्ष कर रहे थे। सबसे पहले हमारे विद्यालय के छात्रों ने सरस्वती जी का वन्दनगान किया । छात्रों की एक टोली ने मधुर स्वर में स्वागत गान प्रस्तुत किया। फिर सभी अतिथियों बको पुष्प की माला अर्पित किया गया। सभा संचालन ने सभि के लिए स्वागत वाक्य कहे। इसके बाद उन्होंने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से विद्यालय के विकासस्वरूप प्रस्तुत किया। विद्यालय के विकास के बारे में सुनकर सभी चकित हो गए। इसके बाद सभा के मुख्य अतिथि भूतपूर्व राज्यपाल जी ने अपने विचार व्यक्त किये।

मुख्य अतिथि जी ने शिक्षा के विकास के प्रति अपना लम्बा वक्तव्य प्रस्तुत किया। इसके माध्य्म से उन्होंने हमारे विद्यालय के विकास की बहुत प्रंशसा की। ओर अपनी दिशाबोध भी दिया। इसके बाद हमारे कक्षाअद्यक्ष ने संचालन को आगे बढ़ाते हुए अंत मे सभाअध्यक्ष प्रदेश के शिक्षा मंत्री से अपना विचार व्यक्त करने के लिए सादर अनुरोध किया। सभाध्यक्ष प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने शिक्षा के स्वरूप ओर आवश्यकता पर अपना विचार व्यक्त किया। इसके बाद उन्होंने शिक्षा का महत्व और उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। अंत मे उन्होंने हमारे विद्यालय के विकास के लिए एक अपना अनुदान देने का वचन दिया। तालियों की गड़गड़ाहट से उनके उस अनुदान देने का बार-बार स्वागत किया गया।

सभा के अंत मे मुख्य अतिथि ने विद्यालय के योग्य ओर प्रतियोगिता में सफल होने वाले छात्रों को विद्यलय की ओर से पुरुस्कार वितरित किया। सबसे आखरी में प्रधानाचार्य ने उपस्थित अतिथियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया और अंत मे सभी को मिष्ठान वितरण किया गया।

विद्यालय के वार्षिकोत्सव के समापन के बाद सभी अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे। सभी कह रहे थे कि वार्षिकोत्सव बहुत ही अच्छे तरीके से समाप्त हो गया है।

विद्यालय के वार्षिकोत्सव के समापन के दुसरे दिन सभी समाचार पत्रों में विद्यालय की प्रसंशा प्रकाशित हुई थी। इसे पढ़कर हम छात्र फुले नही समा रहे थे। यही नही हमारे परिवार वाले हमारे सगे-सम्बन्धी ओर सभी लोग विद्यालय की सराहना कर रहे थे। हमने मन ही मन इस विद्यालय का छात्र होने के लिए अपने आप को धन्य समझ रहे थे।

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