विद्यालय से घर लौटी तो घर पर ताला लगा था पर निबंध
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विद्यालय में मेरा पहला दिन आषाढ़ के प्रथम मेघ के समान सुखद, रसगुल्लों के समान मधुर और भोजन में अवांछति चिपरी मिर्च के समान कुछ तीक्षाता लिये रहा । कुछ सहपाठियों का चहेता बना तो कुछ को लगा आँख की किरकिरी, कहाँ से टपक पड़ी यह बला ।
मैं आत्मविश्वासपूर्वक कक्षा में प्रविष्ट हुआ और एक खाली डैस्क पर पुस्तकें रखकर प्रार्थनास्थल की ओर चल पड़ा । मुझे यह तो पता था कि प्रार्थना में पंक्तियाँ कक्षानुसार बनती हैं, पर मेरी कक्षा की कौन-सी पंक्ति है, यह जानकारी मुझे न थी, इसलिए मैं अपनी ही कक्षा के एक छात्र के पीछे-पीछे जाकर पंक्ति में खड़ा हो गया ।
प्रार्थना के पश्चात् विद्यार्थी अपनी-अपनी श्रेष्ठ श्रेणियों में गए । मैं भी कक्षा में जाकर अपने स्थान पर बैठ गया । प्रथम पीरियड शुरू हुआ । अंग्रेजी के अध्यापक आए । ‘क्लास स्टैण्ड’ हुई, बैठी । अंग्रेजी के अध्यापक ने ग्रीष्मावकाश के काम के बारे में जानकारी ली । एक विद्यार्थी को कापियाँ इकट्ठी करने को कहा ।
जब वह विद्यार्थी मेरे पास आया तो मैंने हाथ हिला दिया । उसने वहीं से कहा, ‘सर, यह कापी नहीं दे रहा है ।’ शिक्षक ने डांटते हुए पूछा तो मैंने बताया कि ‘मैं आज ही विद्यालय में प्रविष्ट हुआ हूँ, इसलिए मुझे काम का पता नहीं था ।’
इंग्लिश सर का गुस्सा झाग की तरह बैठ गया । तब प्यार से पूछा, ‘पहले कहाँ पढ़ते थे ?’ मैंने बताया कि मैं केन्द्रीय विद्यालय, भोपाल का छात्र हूँ । पिताजी की बदली होने के कारण दिल्ली आया हूँ । अध्यापक महोदय का दूसरा सवाल था-होशियार हो या कमजोर ? मेरा उत्तर था, ‘मैं पढ़ाई में तो अच्छा हूँ ही, शरीर से भी बलवान हूँ ।
मेरे इस उत्तर से सारी कक्षा ने मुझे ऐसे घूरकर देखा, मानो मैं चिड़ियाघर का कोई विचित्र प्राणी हूँ । यथा समय घंटी बजती रही । पीरियड बदलते रहे । शिक्षक आते-जाते रहे । अन्तिम पीरियड आ गया । अध्यापिका आईं । स्थूल शरीर था उनका । टुनटुन की चर्बी भी शायद इन्होंने चुरा ली थी ।
आंखें ऐसी मोटी और डरावनी कि डांट मारे तो छात्र-छात्राएँ काँप उठें । सुन्दर इतनी कि रेखा और माधुरी भी लज्जित हो जायें । वे आईं, क्लास का ‘स्टैंड अप, सिट डाउन’ हुआ । उन्होंने पहला प्रश्न किया, ‘कौन है वह लड़का जो आज ही कक्षा में आया है ?’
आते ही पहला वार मुझ पर । मैं मौन भाव से खड़ा हो गया । क्या नाम है ? कहाँ रहते हो ? माता कहाँ की रहने वाली हैं ? पिता किस पद पर हैं ? आदि-आदि । मैं प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अर्ध-मुस्कान से देता
रहा । जब पिता का पद सुना तो लगा जैसे भयंकर भूचाल आ गया हो । वे कांप-सी गईं । उनकी वाणी अवरुद्ध हो गई । पसीना छूटने लगा पर वे जल्दी ही सहज हो गईं और अध्यापन में प्रवृत हो गयी ।
घंटी बजी । वह इस बात का संकेत थी कि अब अपने-अपने घर जाओ । मैं विद्यालय से घर लौटा । मन प्रसन्न था । अपनी प्रतिभा का प्रथम प्रभाव अध्यापकों और सहपाठियों पर डाल चुका था । पर ‘टुनटुन’ की ‘पिताजी को नमस्ते’ मेरे हृदय को कचोट रही थी । सायंकाल पिताजी कार्यालय से लौटे । बातचीत में मेरे प्रथम दिन की कहानी पूछी तो मैंने सोल्लास सुना दी और डरते-डरते अध्यापिका का ‘नमस्कार’ भी दे दिया ।
पिताजी हँस पड़े, हँसते ही रहे । बाद में शान्त हुए तो बताया कि वे मेरे साथ पड़ती थीं और हम दोनों एक ही मौहल्ले में रहते थे । जवानी में वह बड़ी जौली (परिहास प्रिय) लड़की थी । तुम उन्हें मेरी ओर से घर आने का निमन्त्रण देना । यह सुनकर हरी मिर्च की तिक्तता चटपटे स्वाद में बदल गई और मन प्रसन्न हो गया ।
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