विद्या महत्व पर पांच श्लोक
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दुर्जन:परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो सन ।
मणिना भूषितो सर्प:किमसौ न भयंकर:।।
अर्थात:- दुष्ट व्यक्ति यदि विद्या से सुशोभित भी हो अर्थात वह विद्यावान भी हो तो भी उसका परित्याग कर देना चाहिए।
जैसे मणि से सुशोभित सर्प क्या भयंकर नहीं होता|
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।
अर्थात:- जिस मनुष्य के पास स्वयं का(प्रज्ञा) विवेक नहीं है, उसके शास्त्र किस काम के, जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
अर्थात:- बड़ों का सम्मान करने वाले और नित्य वृद्धों (बुजुर्गों) की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती हैं।
हस्तस्य भूषणम दानम, सत्यं कंठस्य भूषणं।
श्रोतस्य भूषणं शास्त्रम,भूषनै:किं प्रयोजनम।।
अर्थात:- हाथ का आभूषण (गहना) दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥
अर्थात:- विद्या अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह(अभाव) में रति (आनंद) समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है, इसलिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन|
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
अर्थात:- विद्या विनय (विनम्रता) देती है, विनय से पात्रता (योग्यता) आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है|
ज्ञातिभिर्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।
दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥
अर्थात:- विद्यारुपी (ज्ञान) रत्न महान धन है, जिसका बंटवारा नहीं हो सकता, जिसे चोर चोरी नहीं कर सकता, और दान करने से जिसमें कमी नहीं आती|
हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता।
कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना॥
अर्थात:- जो चोरों को नजर नहीं आती, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता, वह विद्या के अलावा कौन सा धन हो सकता है ?
श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्टि।।
संस्कारशौचेन परं पुनीते शुद्धा हि वुद्धिः किल कामधेनुः ||
अर्थात:- विद्या सचमुच कामधेनु है, क्योंकि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति(मुसीबत) को रोकती है, यश(प्रसिद्धी)दिलाती है, मलिनता(गरीवी) धो देती है, संस्काररूप पावित्र्य द्वारा अन्य को पावन करती है|
कुत्र विधेयो यत्नः विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।।
अवधीरणा के कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ।
अर्थात:- प्रयास कहाँ करना चाहिए? विद्याभ्यास, सदौषध और परोपकार में, त्याग कहाँ करना चाहिए? दुर्जन, परायी स्त्री और परधन में|
विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य ।
कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥
अर्थात:- विद्यावान और विनयी मनुष्य सभी का चित्त हरण(आकर्षित) कर लेता है|जैसे सुवर्ण और मणि का संयोग सबकी आँखों आँखों को सुख देता है|
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् ।
कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ॥
अर्थात:- कुरुप का रुप विद्या है, तपस्वी का रुप क्षमा, कोयल का रुप स्वर, और स्त्री का रुप पातिव्रत्य है|
रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
अर्थात:- कोई व्यक्ति यदि रुपवान है, जवान है, ऊँचे कुल में पैदा हुआ है, लेकिन यदि वह विद्याहीन है, तो वह सुगंधरहित केसुडे के फूल की तरह शोभा नहीं देता है|
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालों ने पाठितः ।।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
अर्थात:- जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं, वह माता शत्रु के समान है और पिता बैरी है, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहीं देता जैसे हँसों के बीच बगुला|
अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् ।
गृहीत एव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥
अर्थात:- बुढापा और मृत्यु नहीं आनेवाले है, ऐसा समझकर मनुष्य को विद्या और धन प्राप्त करना चाहिए| पर मृत्यु ने हमारे बाल पकड़े हैं, यह समझकर धर्माचरण करना चाहिए|
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्।
विद्या राजसु पुज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥
अर्थात:- विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, विद्या गुप्त धन है. वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है. विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में विद्या बंधु है| विद्या बड़ी देवता है, राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं, विद्याविहीन व्यक्ति पशु हीं है|
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।
अहार्यत्वादनध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा॥
अर्थात:- सब धनों में विद्यारुपी धन सर्वोत्तम है, क्योंकि इसे न तो छीना जा सकता है और न यह चोरी की जा सकती है|इसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है और उसका न इसका कभी नाश होता है|
विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये ।।
आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥
अर्थात:- शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या ये दो प्राप्त करने योग्य विद्या हैं| इनमें से पहली वृद्धावस्था में हास्यास्पद बनाती है और दूसरी सदा आदर दिलात
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Explanation:
विद्या पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में ---
1-विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
2-पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
3-कुत्र विधेयो यत्नः विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।
4-अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥
5-विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य ।
6-कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥