Hindi, asked by anilpathak82gmailcom, 2 months ago

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयः
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु।। 4 ।।




*please tell what is the meaning*​

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Answered by bhatiamona
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विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयः

धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।

सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्

तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु।। 4 ।।

इस श्लोक का अर्थ है कि , श्लोक में विद्या के महत्व बताया है | विद्या मनुष्य की अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है और साथ देती है |  विद्या कामधेनु है, विरह में रति समान है, विद्या ही तिसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल की महिमा है, बिना रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर मनुष्य को विद्यावान् बनना चाहिए l मनुष्य के पास विद्या रूपी धन जरुर होना चाहिए |

Answered by umangchoudhary083
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Explanation:

वद्या मनुष्य की ऄतुलनीय कीर्हत है।

 भाग्य केनष्ट या प्रितकूल हो जानेपर िवद्या अश्रय देनेवाली है।

 कामधेनुकेसमान आच्छाओं का फल देनेवाली भी है।

 पररवार सेिवयोग की ऄवस्था मेंभी रित / अनन्द (प्रीित) देनेवाली है।

 यह तृतीय नेत्र / ज्ञान रूपी अाँख है।

 यह सम्मान भी ददलाती है, कुल को मिहमा युक्त कर देती है।

 आसी प्रकार सब रत्नों केधारण न करनेपर भी िवद्या रत्नों सेऄिधक िवभूिषत करती है।

 आसिलए ऄन्य सभी िवषयों को छोड़कर िवद्या मेंऄिधकार / िनपुणता प्राप्त करनी िािहए।

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