विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसु पूज्यते न तु धनं विद्याविहीन: पशुः ------- भावार्थ लिखिए
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विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसु पूज्यते न तु धनं विद्याविहीन: पशुः
भावार्थ ➲ अर्थात विद्या मनुष्य का सबसे विशिष्ट रूप है, यह वह गुप्त धन है, जो भोग देता है, यश प्रदान करता है और समस्त सुखों का कारण है। विद्या गुरु की भी गुरु है। विद्या परदेश में मनुष्य की हितेषी और बंधु का कार्य करती है। विद्या ही सबसे बड़ी देवता है। राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं। इसलिए विद्या से हीन नर पशु के समान है।
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