Hindi, asked by amitfeedback83, 10 days ago

विद्या पर 501 संस्कृत विद मीनिंग​

Answers

Answered by ashamonu08gmailcom
0

सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।

सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

अर्थात:- जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले को विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी को सुख की ।

sanskrit slokas on vidya

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।

अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥

अर्थात:- आलसी व्यक्ति को विद्या नहीं मिल सकती है, और विद्या हीन व्यक्ति धन नहीं कमा सकता है, धनविहीन व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता है और मित्रविहीन व्यक्ति को सुख कहाँ ?

पुस्तकस्या तु या विद्या परहस्तगतं धनं ।

कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥

अर्थात:- जो विद्या पुस्तक में है और जो धन किसी को दिया हुआ है. जरूरत पड़ने पर न तो वह विद्या काम आती है और न वह धन.

रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।

विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥

अर्थात:- रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।

विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः ।

अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥

अर्थात:- विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

अर्थात:- विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।

दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले ।

श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥

अर्थात:- सब दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।

क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥

अर्थात:- एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो

धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।

सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्

तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥

अर्थात:- विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।

नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।

नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥

अर्थात:- विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।

sanskrit slokas on vidya

गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा।

अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥

अर्थात:- विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है ।

पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् ।

मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥

अर्थात:- पढनेवाले को मूर्खत्व नहीं आता; जपनेवाले को पातक नहीं लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहीं होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहीं होता ।

न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।

व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥

अर्थात:- विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।

नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।

नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥

अर्थात:- विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं ।

ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।

दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥

अर्थात:- यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहीं सकता, जिसे चोर ले जा नहीं सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहीं होता ।

स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्वं प्रेमभावोऽथ भोगिता ।

अविनीतत्वमालस्यं विद्याविघ्नकराणि षट् ॥

अर्थात:- स्वंच्छंदता, पैसे का मोह, प्रेमवश होना, भोगाधीन होना, उद्धत होना – ये छे भी विद्याप्राप्ति में विघ्नरुप हैं ।

Explanation:

please mark as brainliest

Similar questions