विद्यापति की काव्य शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
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Explanation:
विद्यापति भारतीय साहित्य की 'शृंगार-परम्परा' के साथ-साथ 'भक्ति-परम्परा' के प्रमुख स्तंभों मे से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। इन्हें वैष्णव , शैव और शाक्त भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला के लोगों को 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' का सूत्र दे कर इन्होंने उत्तरी-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महान् प्रयास किया है।
हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ शुक्ल जी ने सम्वत् 1050 से माना है। वे मानते हैं विद्यापति के काव्य मे भक्ति एंव श्रृंगार के साथ साथ गीति प्रधानता भी मिलती है.
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Answer:
विद्यापति के काव्य की एक प्रमुख विशेषता यह है कि उनकी कविताओं के मध्य में कहीं-कहीं गद्य के दर्शन भी होते हैं। वर्णन की दृष्टि से देखा जाय तो विद्यापति का काव्य वीरता, श्रृंगार और भक्ति का अद्भुत मेल है। वीर रस की मुख्य रचना कीर्तिलता है, जबकि पड़ावली श्रंगार और भक्ति का मिश्रण है।
Explanation:
मैथिली विद्यापति की मातृभाषा थी। उस काल के साहित्य या उससे भी पूर्व ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा रचित 'वर्णरत्नकार' के अध्ययन से पता चलता है कि मैथिली उस समय की पर्याप्त उन्नत भाषा है। वर्णन की दृष्टि से देखा जाय तो विद्यापति का काव्य वीरता, श्रृंगार और भक्ति का अद्भुत मेल है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि उन्होंने मैथिली में बड़ी मात्रा में मुक्त कविता लिखी है और हम उन्हें 'विद्यापति पड़ावली' के नाम से जानते हैं।
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