विद्यार्थी को लक्ष्य प्राप्ति हेतु समय सारणी क्यों बनाने चाहिए इसके क्या लाभ है
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अपने आपको सक्षम व सुयोग्य साबित किया। एक शिक्षक होने के नाते विद्यार्थियों से मेरी अपेक्षा है कि वे अपना लक्ष्य निर्धारित तर्कपूर्ण ढंग से निर्धारित करें। उन्हें यह सोचने की आवश्यकता नहीं है कि हम अपने लक्ष्य को कैसे पूरा करेंगे और हमें क्या संसाधन आवश्यक होंगे बल्कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों को साध्य एवं तार्किक रूप से अपेक्षा निर्धारण हेतु अपने जीवन में निम्न गुणों का समावेश अवश्य करना चाहिए। तब ही हम लक्ष्य को निर्धारित समय सीमा में व उत्कृष्टता के साथ प्राप्त कर सकेंगे। अधोलिखित श्लोक ²ष्टि योग्य हैं। 'ज्ञान तृष्णा गुरौनिष्ठा सदा अध्ययन दक्षता। एकाग्रता, महत्वेच्छा, विद्यार्थी गुण पंचकम्'। अगर कोई विद्यार्थी जीवन में सफलता चाहता है तो उसे अपने जीवन में यह पांच गुण अवश्य लाने चाहिए। ज्ञान तृष्णा, गुरुनिष्ठा, सदा अध्ययन दक्षता, एकाग्रता और महत्वाकांक्षा। ज्ञानतृष्णा इस श्लोक में सबसे पहले आया है। जिसका अर्थ है ज्ञान की प्यास। जबतक आपके भीतर ज्ञान की प्यास नहीं होगी। आप तबतक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। एक कहावत है कि आप घोड़े को पानी तक तो लेके जा सकते हैं लेकिन पानी पीना या न पीना उसके ऊपर है। अभिभावक विद्यार्थी के लिए संसाधन जुटाते हैं। अध्यापक ज्ञान देने का कार्य करते हैं परन्तु जबतक आपके अंदर ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा नहीं होगी। आप तबतक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। ज्ञान लेना अथवा न लेना विद्यार्थी पर निर्भर करता है न कि अभिभावक अथवा आचार्य पर। अंग्रेजी में एक कहावत है कि आप उसे नहीं पढ़ा सकते जो सीखना ही नहीं चाहता। यदि कुछ पाना चाहता है तो उसे कोई भी रोक नहीं सकता है। दो तरह की स्थितियां होती हैं- एक मनस्थिति और दूसरी परिस्थिति। यदि किसी की मनस्थिति अच्छी हो और परिस्थिति खराब हो तो भी सफलता प्राप्त की जा सकती है लेकिन यदि किसी की मनस्थिति खराब हो और परिस्थिति अच्छी हो तो कोई भी उसे सफल नहीं करा सकता है इसलिए मनस्थिति का अच्छा होना आवश्यक है। 'मनस्थिति अच्छी तो विपरीत परिस्थिति कच्ची'। आस्ट्रेलिया का एक व्यक्ति था मार्क हेनरिस। एकदिन वो कोई सुंदर भवन देखने के लिए अचानक उसके दोनों पैर बर्फ में धंस गए। सुनसान जगह होने के कारण किसी को पता तक नहीं चला। दो तीन दिन बर्फ में धंसे रहने के कारण उसके घुटने के नीचे का हिस्सा पूरी तरह गल गया। डाक्टरों को उसके दोनों पैर घुटनों के नीचे से काटने पड़े। इसके बाद उसके ²ढ़ संकल्प के कारण कि इन पर्वतों पर चढ़ते समय मेरे दोनों पैर कट गए थे अब मैं दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर जरूर चढूगां। इसके बाद कृतिम पैर लगवाने के बाद कुछ वर्ष उसने हिमालय के शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर एक नया कीर्तिमान बनाया। यह सब संकल्प का ही परिणाम था। हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पास इंजीनियं¨रग की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। इतनी विपरीत परिस्थिति थी उनकी, लेकिन जब उनकी बहन ने उन्हें अपना सोने का कंगन दिया और कहा कि तुम इस कंगन को बेचकर अपनी फीस भरो तब उनके मजबूत इरादे और उनकी ज्ञान की तृष्णा ही सुपरिणाम था कि उनकी इंजीनियं¨रग व बाद की पढ़ाई उनकी छात्रवृत्ति से सम्पन्न हुई।
सम्पूर्णानंद जी ने कहा है कि एकाग्रता सम्पूर्ण ज्ञान की कुंजी है। स्वामी विवेकानन्दजी की एकाग्रता के बारे में हमसब जानते ही हैं। उनके गुरुभाई रोज उनके लिए पुस्तकालय से किताब लाते थे और अगले दिन उसे जमा कर देते थे। इससे पुस्तकालय के प्रमुख ने कहा कि मुझे लगता है कि आप मुझसे फालतू की मेहनत कराते हैं। पुस्तकों को केवल वैसे ही ले जाते हैं। इस पर विवेकानन्दजी ने पुस्तकालय अध्यक्ष को सारी पुस्तकों के उत्तर दिए और वो भी पृष्ठ क्रमांक के साथ। यह उनकी एकाग्रता का ही कमाल था।
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