विद्यार्थियों के लिए "कोरोना" चुनौती भी और अवसर भी।
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वर्तमान में पूरा विश्व कोरोना महामारी से पीड़ित है। इसने शैक्षणिक जगत के समक्ष चुनौती एवं अवसर दोनों प्रस्तुत किए हैं। कोरोना के बाद दुनिया कैसी होगी और शिक्षा व्यवस्था क्या होगी, यह अभी आभासी है। तकनीक के जरिए शिक्षक छात्रों को पढ़ा रहे हैं लेकिन क्या यह आगे भी जारी रहेगा इस पर कहना मुश्किल होगा। आगामी वर्षों में पूरी दुनिया में व्यापक बदलाव होंगे। इसमें शिक्षा भी शामिल है। हमें यह तय करना होगा कि समाज के अंतिम व्यक्ति का नुकसान ना हो तभी शैक्षिक रूप से भारत आत्मनिर्भर बन सकेगा।
चौ.चरण सिंह विवि के राजनीति विज्ञान विभाग में कोविड-19 के साथ जीवन: स्वावलंबी भारत की रूपरेखाविषय पर जारी वर्कशॉप में यह बात एनआईओएस के पूर्व चेयरमैन प्रो.चंद्रभूषण शर्मा ने कही। प्रो.रजनी रंजन सिंह ने कहा कि पाश्चात्य चिंतन टुकड़ों में विचार करता है। यह समाज में विभेदकारी व्यवस्थाओं को जन्म दे रहा है। भारतीय जीवन दृष्टि शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा सभी को एक मानती है। वह सबमें एकसमान आत्मा देखती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा का स्वरूप एवं प्रारूप विभेदकारी है। पं.दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक प्रो.पवन शर्मा ने कहा कि पंडित दीनदयाल के एकात्म मानवदर्शन में सर्व समावेशी शिक्षा दर्शन, भारतीय परंपरा में जड़ एवं चेतन सभी की बात करता है। हाल ही में हाईकोर्ट ने नदियों को भी जीवंत इकाई माना है जो यह साबित करता है कि भारतीय चिंतन दृष्टि संपूर्ण प्रकृति और सृष्टि को एकात्म मानती है। प्रोवीसी प्रो.वाई विमला ने कहा कि समावेशी शिक्षण प्रतिभा, योग्यता एवं दक्षता के आधार पर होना चाहिए। हम विद्यार्थी की क्षमता और प्रतिभा को निखारें ना कि अपनी शिक्षण पद्धति या अपने विचारों को उस पर थोपें। वर्कशॉप में डॉ.राजेंद्र कुमार पांडेय, भानु प्रताप, डॉ.भूपेंद्र प्रताप सिंह, डॉ.देवेंद्र उज्जवल, संतोष त्यागी एवं नितिन त्यागी का सहयोग रहा।