विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्
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विद्या विनय देती हैं, विनय से योग्यता आती हैं। योग्यता से सम्म्पन्नता आती हैं, जिस से कर्तव्य-कर्म कर पाना संभव होता हैं, जिससे अंततः उसे दुखरहित स्थिति प्राप्त होती हैं।
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'विद्या ... सुखम्।'
Explanation:
भावार्थ: इस श्लोक में कवि कहना चाहते हैं की 'विद्या विनम्रता प्रदान करती है, जबकि विनय अर्थात नम्रता सज्जनता प्रदान करती है। सज्जनता(पात्रता) धन प्रदान करता है और धन से धर्म-कर्म की प्राप्ति होती है और दान करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति अथवा अनुभूति होती है।
सरल अर्थ: ज्ञान हमें अनुशासन प्रदान करता है, योग्यता अनुशासन से आती है, धन योग्यता से आता है, अच्छे कर्म और धर्म धन का परिणाम है, और अच्छे धर्म-कर्म करने से हमें खुशी (संतुष्टि / खुशी) मिलती है।
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