World Languages, asked by avnisahu04, 4 months ago

"विद्या विवादाय भवति " अत्र क्रिया पदं किम् अस्ति?​

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Answered by mesonam
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(3)

मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्ग।

मूर्खाश्च मूर्खः सुधियः सुधीभिः समानशील-व्यसनेषु सख्यम् ॥

शब्दार्थ

मृगाः = हिरन।

सङ्गम् = साथ।

अनुव्रजन्ति.= साथ-साथ चलते हैं।

गावः = गायें।

तुरगाः = घोड़े।

तुरङ्ग = घोड़ों के साथ।

सुधियः = बुद्धिमान्।

समानशीलव्यसनेषु = जिनके स्वभाव और रुचियाँ एक समान हों, उनमें

सख्यम् = मित्रता।

प्रसंग

तृतीया विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से प्रस्तुत श्लोक में समान स्वभाव, आदत वाले व्यक्तियों की मित्रता उदाहरण देकर बतायी गयी है।

अन्वय

मृगाः मृगैः (सङ्गम्) गावः (च) गोभिः (सङ्गम्), तुरगाः तुरङ्गैः (सङ्गम्) मूर्खाः (च) मूर्खः (सङ्गम्), सुधिय: सुधीभिः सङ्गम् अनुव्रजन्ति। समानशील-व्यसनेषु सख्यम् (भवति)।

व्याख्यो

हिरन हिरनों के साथ और गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ और मूर्ख मूर्खा के साथ, बुद्धिमान् बुद्धिमानों के साथ-साथ चलते हैं। समान अथवा एक जैसे स्वभाव और आदत वालों में मित्रता होती है।

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।

खलस्य साधोर्विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

शब्दार्थ

विवादाय = झगड़े के लिए।

मदाय = घमण्ड करने के लिए।

परेषां = दूसरों को।

परिपीडनाये = सताने के लिए।

खलस्य = दुष्ट की।

साधोः = सज्जन।

विपरीतम् = उल्टा।

एतद् = इसके।

ज्ञानाय = ज्ञान के लिए।

दानाय = दान के लिए।

रक्षणाय = रक्षा के लिए।

प्रसंग

प्रस्तुत श्लोक में चतुर्थी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से दुष्ट और सज्जन पुरुष के अन्तर को बताया गया है।

अन्वय

खलस्य विद्या विवादाय (भवति), धनं मदाय (भवति), शक्ति परेषां परिपीडनाय (भवति)। एतद् विपरीतं साधोः (विद्या) ज्ञानाय (भवति),(धनं) दानाय (भवति), (शक्तिः ) परेषां रक्षणाय च (भवति)।

व्याख्या

दुष्ट की विद्या विवाद के लिए होती है, धन घमण्ड करने के लिए होता है और शक्ति दूसरों को पीड़ित करने के लिए होती है। इसके विपरीत सज्जन की विद्या ज्ञाने के लिए होती है, धन दान देने के लिए होता है और शक्ति दूसरों की रक्षा करने के लिए होती है।

(5)

क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः।।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥

शब्दार्थ

क्रोधात् = क्रोध से।

सम्मोहः = अज्ञान।

स्मृतिविभ्रमः = स्मरण-शक्ति का नाश।

स्मृतिभ्रंशात् = स्मरण शक्ति के नाश से।

बुद्धिनाशः = बुद्धि का नाश।

प्रणश्यति = नष्ट हो जाता है।

प्रसंग

प्रस्तुत श्लोक में पंचमी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से क्रोध को नाश का मूल कारण बताया गया है।

अन्वय

क्रोधात् सम्मोहः भवति। सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः (भवति)। स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः (भवति)। बुद्धिनाशात् (जन:) प्रणश्यति।।

व्याख्या

क्रोध से व्यक्ति को अज्ञान होता है। अज्ञान से स्मरण-शक्ति का नाश होता है। स्मृति के नष्ट हो जाने से बुद्धि का नाश होता है। बुद्धि के नष्ट हो जाने से मनुष्य ही नष्ट हो जाता है।

(6)

अलसस्य कुतो विद्यो अविद्यस्य कुतो धनम् ।

अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥

शब्दार्थ

अलसस्य = आलसी व्यक्ति के पास।

कुतः = कहाँ।

अविद्यस्य = विद्याहीन के पास।

अधनस्य = धनहीन के पास।

अमित्रस्य = मित्रहीन के पास।

सन्दर्य :

प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के क्रियाकारककुतूहलम्’ पाठ से ली गयी है।

[संकेत-इस पाठ की शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग

प्रस्तुत सूक्ति में विनय और भाषा के महत्त्व को समझाया गया है।

अर्थ

विनय वंश को बताती है और भाषा देश को।।

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