वाद्य यंत्र व उनके कंपयमान भाग बताएं 1 वीणा 2 तबला 3 बांसुरी 4 मंजीरा 5 एकतारा 6 शहनाई 7 ढोलख
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200 ईसा पूर्व से 200 ईसवीं सन् के समय में भरतमुनि द्वारा संकलित नाट्यशास्त्र में ध्वनि की उत्पत्ति के आधार पर संगीत वाद्यों को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है:
1. तत् वाद्य अथवा तार वाद्य
2. सुषिर वाद्य अथवा वायु वाद्य ( हवा के वाद्य )
3. अवनद्व वाद्य और चमड़े के वाद्य ( ताल वाद्य ; झिल्ली के कम्पन वाले वाद्ययंत्र )
4. घन वाद्य या आघात वाद्य ( ठोस वाद्य, जिन्हें समस्वर स्तर में करने की आवश्यकता नहीं होती। )
वीना :-
वीणा भारत के लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग प्राय: शास्त्रीय संगीत में किया जाता है। वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है। समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं (रुद्रवीणा, विचित्रवीणा इत्यादि)। किन्तु इसका प्राचीनतम रूप एक-तन्त्री वीणा है।
तबला:-
तबला भारतीय संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है। यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ"कहते हैं।
बांसुरी:-
बांसुरी काष्ठ वाद्य परिवार का एक संगीत उपकरण है। नरकट वाले काष्ठ वाद्य उपकरणों के विपरीत, बांसुरी एक एरोफोन या बिना नरकट वाला वायु उपकरण है जो एक छिद्र के पार हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न करता है। होर्नबोस्टल-सैश्स के उपकरण वर्गीकरण के अनुसार, बांसुरी को तीव्र-आघात एरोफोन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
मंजीरा:-
मंजीरा भजन में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण वाद्य है। ... ये दोनों हाथों से बजाए जाते हैं, दोनों हाथों में एक-एक मंजीरा रहता है। परस्पर आघात करने पर ध्वनि निकलती है। मुख्य रूप से भक्ति एवं धार्मिक संगीत में ताल व लय देने के लिए ढोलक तथा हारमोनियम के साथ इसका प्रयोग होता है।
एकतारा:-
एकतारा अथवा इकतारा भारतीय संगीत का लोकप्रिय तंतवाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग भजन या सुगम संगीत में किया जाता है। इसमें aake तार लगे होते हैं। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मिस्र के पारंपरिक संगीत में इसका प्रयोग होता है। इकतारा मूलतः भारतीय कवियों तथा घुमक्कड़ गवैयों द्वारा प्रयोग किया जाता था।
शहनाई:-
यह लकड़ी से बना होता है, जिसके एक सिरे पर दोहरा ईख होता है और दूसरे सिरे पर एक धातु या लकड़ी की परत लगी होती है।इसकी ध्वनि को शुभता और पवित्रता की भावना को बनाए रखने और बनाए रखने के लिए सोचा जाता है, और परिणामस्वरूप, विवाह, जुलूस और मंदिरों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, हालांकि यह संगीत समारोहों में भी खेला जाता है। शहनाई दक्षिण भारत के नादस्वरम के समान है।
धोलक:-
ढोलक, ढोल या ढोलकी भारतीय वाद्य यंत्र है। ढोल भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है। उत्तर भारत में इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता है। ये हाथ या छडी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं।
200 ईसा पूर्व से 200 ईसवीं सन् के समय में भरतमुनि द्वारा संकलित नाट्यशास्त्र में ध्वनि की उत्पत्ति के आधार पर संगीत वाद्यों को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है:
1. तत् वाद्य अथवा तार वाद्य
2. सुषिर वाद्य अथवा वायु वाद्य ( हवा के वाद्य )
3. अवनद्व वाद्य और चमड़े के वाद्य ( ताल वाद्य ; झिल्ली के कम्पन वाले वाद्ययंत्र )
4. घन वाद्य या आघात वाद्य ( ठोस वाद्य, जिन्हें समस्वर स्तर में करने की आवश्यकता नहीं होती। )