Hindi, asked by akashgiradkar2018, 9 days ago

वेदनेला अंत नही माला बनना गाजणान्या वासनाची वचने सारी सुटली या काव्यक्ती कोणत्या कवितेतील माले माया कवितेचे कवी कोण आहेस से सागा

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Answered by ayubpasha5786
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Answer:

विश्व व्यापक एक पुरूष करी वेदान्त जेने भणे;

संज्ञा ईश्वरनी जथारथ घट जेनेज, ना अन्यने।

रोधी प्राण मुमुक्ष, अन्तर विशे शोधे वली जेहने;

शम्भु भावनी भक्ति से सुलभ ते शम्भुज हो सर्वने॥

इसमें चिन्हों द्वारा ‘पुरूष' के ‘पु' को दीर्घ, ‘शम्भु' के ‘भु' को भी दीर्घ और ‘भावनी' के ‘नी' को हस्व पढ़ने की आज्ञा है। इन विशेष चिन्हों की कल्पना की क्या आवश्यकता? यदि संस्कृत में बिना ऐसे चिन्हों की कल्पना के काम चल गया और अब भी चल जाता है तो गुजराती में भी चल सकता है। इस तरह के चिन्ह कवि के रचना-चातुर्य का लाघव सूचित करते हैं, गौरव नहीं। जो अच्छा कवि है और जिसके पास यथेष्ट शब्द-सम्पत्ति है उसे शब्दों को तोड़ने मरोड़ने की क्या आवश्यकता? हिन्दी जैसी अनुन्नत भाषा के भी कई एक वर्तमान-कालीन कवि ऐसे वृत्तों में दीर्घ को लघु और लघु को दीर्घ पढ़ने का नियम किये बिना ही पद्यरचना करते हैं। फिर गुजराती में भी ऐसी रचना क्यों न होनी चाहिए? आशा है ध्रुव महाशय इस पर विचार करेंगे और श्रीकण्ठ-चरित के इस श्लोक का स्मरण कर लेंगे―

अभ्रंकषोन्मिषितकीर्तिसितातपत्रः

⁠स्तुत्यः स एव कविमण्डलचक्रवर्ती।

यस्येच्छयैव पुरतः स्वयमुजिहीते

⁠द्राग्वाव्यवाचकमयः पृतनानिवेशः॥

[ मार्च १९१३ ]

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