विधिलिंग लकार के तीनों पुरुषों एवं तीनों वचनों के लिख् धातु के रूप ।
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में क्रियाओं (verbs) के मूल रूप को धातु कहते हैं। धातु ही संस्कृत शब्दों के निर्माण के लिए मूल तत्त्व (कच्चा माल) है। इनकी संख्या लगभग 2012 है। धातुओं के साथ उपसर्ग, प्रत्यय मिलकर तथा सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि) बनते हैं। दूसरे शब्द में कहें तो संस्कृत का लगभग हर शब्द अन्ततः धातुओं के रूप में तोड़ा जा सकता है। कृ, भू, स्था, अन्, ज्ञा, युज्, गम्, मन्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं।
'धातु' शब्द स्वयं 'धा' में 'तिन्' प्रत्यय जोड़ने से बना है। रूच धातु कहां है।
व्याकरणशास्त्र में पाँच अंगों की परम्परा दिखती है। इसीलिये 'पंचांग व्याकरण' भी प्रसिद्ध है। पाँच अंग ये हैं- सूत्रपाठ, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ तथा लिंगानुशासन। इन पाँच अंगों में से धातुपाठ अतिमहत्वपूर्ण है। प्रायः सभी शब्दों की व्युत्पत्ति धातुओं से की जाती है। कहा गया है - सर्वं च नाम धातुजमाह ।
अनेकों वैयाकरणों ने धातुपाठों का प्रवचन किया है। श्रीमान युधिष्ठिर मीमांसक ने व्याकरशास्त्र के इतिहास में २६ वैयाकरणों का उल्लेख किया है।
धातुओं से व्युत्पन्न कुछ शब्दों के उदाहरण
(१) कृ (करना)
संज्ञा : कार्य, उपकरण, कर्मन्, प्रक्रिया,
विशेषण : कर्मठ, सक्रिय, उपकारी,
क्रिया : करोति, नमस्कुरु, प्रतिकरोमि, कुर्मः
(२) भू (होना)
संज्ञा : भवन, प्रभाव, वैभव, भूत, उद्भव, भविष्य,
विशेषण : भावी, भावुक, भावात्मक, भौगोलिक
क्रिया : भविष्यति, अभवं, अभव, संभवेत्, संभवामि
(३) गम् (जाना)
संज्ञा : गति, आगन्तुक, जगत्, संगम, प्रगति, अन्तर्गामित्व, गन्ता
विशेषण : गमनशील, सर्वगत, निर्गामी, सुगम,
क्रिया : संगच्छ, निर्गच्छति, उपगमिष्यामि,
वर्गीकरण
पाणिनीय धातुपाठ में धातुओं के निम्नलिखित वर्ग हैं-
1. भ्वादि (भू +आदि)
2. अदादि (अद् +आदि)
3. जुहोत्यादि
4. दिवादि
5. स्वादि
6. तुदादि
7. रुधादि
8. तनादि
9. क्र्यादि (क्री +आदि ; "कृ +आदि" नहीं )
10. चुरादि
संस्कृत में धातु रूप
परस्मैपद पद की सभी लकारों की धातु रुप सरंचना
१. लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष ति तस् (तः) अन्ति
मध्यम पुरुष सि थस् (थः) थ
उत्तम पुरुष मि वस् (वः) मस् (मः)
क्रिया के आरम्भ से लेकर समाप्ति तक के काल को वर्तमान काल कहते हैं। जब हम कहते हैं कि ‘रामचरण पुस्तक पढ़ता है या पढ़ रहा है’ तो पढ़ना क्रिया वर्तमान है अर्थात् अभी समाप्त नहीं हुई।
२. लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल, Past Perfect Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष अ अतुस् उस्
मध्यम पुरुष थ अथुस् अ
उत्तम पुरुष अ व म
लिट् लकार का प्रयोग परोक्ष भूतकाल के लिए होता है। ऐसा भूतकाल जो वक्ता की आँखों के सामने का न हो। प्रायः बहुत पुरानी घटना को बताने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे – रामः दशरथस्य पुत्रः बभूव। = राम दशरथ के पुत्र हुए। यह घटना कहने वाले ने देखी नहीं अपितु परम्परा से सुनी है अतः लिट् लकार का प्रयोग हुआ।
३. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्, First Future Tense of Periphrastic)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष ता तारौ तारस्
मध्यम पुरुष तासि तास्थस् तास्थ
उत्तम पुरुष तास्मि तास्वस् तास्मस्
यह लकार अनद्यतन भविष्यत् काल के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसा भविष्यत् जो आज न हो। कल, परसों या उसके भी आगे। आज वाले कार्यों के लिए इसका प्रयोग प्रायः नहीं होता। जैसे – ” वे कल विद्यालय में होंगे” = ते श्वः विद्यालये भवितारः।
४. ऌट् लकार (सामान्य भविष्यत्, Second Future Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष ष्यति ष्यतम् (ष्यतः) ष्यन्ति
मध्यम पुरुष ष्यसि ष्यथस् (ष्यथः) ष्यथ
उत्तम पुरुष ष्यामि ष्यावः ष्यामः
सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार का प्रयोग किया जाता है। जहाँ भविष्य काल की कोई विशेषता न कही जाए वहाँ लृट् लकार ही होता है। कल, परसों आदि विशेषण न लगे हों। भले ही घटना दो पल बाद की हो अथवा वर्ष भर बाद की, बिना किसी विशेषण वाले भविष्यत् में लृट् का प्रयोग करना है। ‘आज होगा’ – इस प्रकार के वाक्यों में भी लृट् होगा।
५. लोट् लकार (अनुज्ञा, Imperative Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष तु ताम् अन्तु
मध्यम पुरुष हि तम् त
उत्तम पुरुष आनि आव आम
लोट् लकार उन सभी अर्थों में होता है जिनमें लिङ् लकार (दोनों भेद) का प्रयोग होता है। एक प्रकार से आप कह सकते हैं कि लोट् लकार लिङ् लकार का विकल्प है। आज्ञा देना, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना करना, निमन्त्रण देना, आशीर्वाद देना- इस सभी अर्थों में लोट् लकार का प्रयोग होता है।
६. लङ्ग् लकार (अनद्यतन भूतकाल, Past Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष त् ताम् अन्
मध्यम पुरुष स् तम् त
उत्तम पुरुष अम् व म
लङ् लकार अनद्यतन भूतकाल के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ‘अनद्यतन भूतकाल’ अर्थात् ऐसा भूतकाल जो आज से पहले का हो।
जैसे –
वह कल हुआ था = सः ह्यः अभवत्।
वे दोनों परसों हुए थे = तौ परह्यः अभवताम्।
वे सब गतवर्ष हुए थे = ते गतवर्षे अभवन्।
जहाँ आज के भूतकाल की बात कही जाए वहाँ लङ् लकार का प्रयोग नहीं करना।
७. विधिलिङ्ग् लकार (चाहिए के अर्थ में, Potential Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन वहुवचन
प्रथम पुरुष यात् याताम् युस्
मध्यम पुरुष यास् यातम् यात्
उत्तम पुरुष याम् याव याम