विवेकानंद जी ने अपने सन्यासी जीवन के बारे में क्या बताया है
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लगभग सभी के मन में महान हो जाने की अभिलाषा कहीं न कहीं दबी होगी। हर कोई जानने को इच्छुक होगा कि ऐसा क्या है जो हमें ‘लार्जर दैन लाइफ’ वाली फ़ीलिंग दे जाए।
चाहे वह बुद्ध हो, विवेकानंद या फिर गाँधी। अक्सर हमें किसी महापुरुष का उजला, चमत्कृत पक्ष ही दिखाया, बताया या सुनाया जाता है। उनके असली संघर्षो को छिपा दिया जाता है या उस पर इतना पर्दा डाल दिया जाता है कि सच स्वतः विकृत हो जाता है। किसी महापुरुष या महामानव को जानने का सबसे श्रेष्ठ उपाय क्या हो सकता है? बेहतर तो यही है कि उन लोगों द्वारा लिखित या मुख द्वारा निःसृत वाणियाँ। यह सब अगर उपलब्ध हो तो दूसरों के कहे का कोई मतलब नहीं होता पर अफ़सोस इस बात का है कि देश के बहुतेरे महामानवों ने अपने बारे में कुछ नहीं लिखा। यहाँ तक कि उन लोगों द्वारा लिखी गई चिट्ठियाँ भी उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए सुनी-सुनाई बातों के आलावा हमें खास कुछ उपलब्ध नहीं होता।
vivekanand ne sanyasi Jivan ke bare mein bataya ki Sanyasi avashya padhne per math mein na rahakar vrukshon ke niche rahte tatha bhiksha dwaravruksh dwara anya aur vastra unke Liye paryapt Hote the