विवेकानन्दस्य जन्म कानिकाता नगरे अभवत्। तस्य पिता विश्वनाथ दत्तः माता च भुवनेश्वरी देवी आस्ताम्। तस्य प्रथम नाम
नरेन्दः आसीत्। नरेन्द्र बान्याद् एव क्रीडापटुः, दयानुः, विचारशीलः च आसीत्। 'ईश्वरः अस्ति न दा इति शङ्का आसीत्।
शास्त्राणाम् अध्ययनेन बहूनां साधूनां च समीपं गत्वा अपि शका परिहारः ने अभवत्। अन्ते च श्री रामकृष्ण परमहंसस्य
सकाशात् तस्य सन्देह-परिहारः अभवत्। परमहंसस्य दिव्य प्रभावेण आकृष्टः सः तस्य शिभ्यः अभवत्। सः विश्वधर्म सम्मेलने
भागं ग्रहीतुम् अमेरिका देशस्य शिकागो नगरं गतवान्। तत्र विविघदेशीयान् जनानुदिश्य हिन्द-धर्म-विषये भाषणं कृतवान्। सः
भारतीयान् ‘उत्तिष्ठ जाग्रत, दीनदेवो भव, दरिद्र देवोभव'-इति संबोधितवान्। अमूल्याः तस्योपदेशाः। in Hindi meaning
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वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं। ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है। ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी। छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है। यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है। इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है।
भुवनेश्वरी इससे ऊँची स्थिति है। उसमें सृष्टि भर का ऐश्वर्य अपने अधिकार में आया प्रतीत होता है। स्वामी रामतीर्थ अपने को 'राम बादशाह' कहते थे। उनको विश्व का अधिपति होने की अनुभूति होती थी, फलतः उस स्तर का आनंद लेते थे, जो समस्त विश्व के अधिपति होने वाले को मिल सकता है। छोटे-छोटे पद पाने वाले-सीमित पदार्थों के स्वामी बनने वाले, जब अहंता को तृप्त करते और गौरवान्वित होते हैं तो समस्त विश्व का अधिपति होने की अनुभूति कितनी उत्साहवर्धक होती होगी, इसकी कल्पना भर से मन आनंद विभोर हो जाता है। राजा छोटे से राज्य के मालिक होते हैं, वे अपने को कितना श्रेयाधिकारी, सम्मानास्पद एवं सौभाग्यवान् अनुभव करते हैं,