व्यंग्य स्पष्ट कीजिए तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं
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तुम परदे का महत्व नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं। यहाँ परदे का सम्बन्ध इज़्जत से है। जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त महत्वहीन है।
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इस व्यंग में हरिशंकर परसाई कहना चाहते हैं कि लोग ऊपरी दिखावा करते हैं वह अंदर से नहीं देखते की खुद की दुर्दशा क्या है पर ऊपरी दिखावा को महत्व देते हैं बल्कि प्रेमचंद जी दिखावे को महत्व ना देकर खुद के फटे हुए जूते के मजबूत तले पर ध्यान देते हैं की जूता फट गया तो क्या हुआ पैर तो सलामत है।
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