India Languages, asked by CFleming8352, 9 months ago

व्याघ्रः अवदत्, "अरे मूर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति। सर्वः स्वार्थं समीहते।’
चञ्चलः नदीजलम् अपृच्छत्। नदीजलम् अवदत्, ‘एवमेव भवति, जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मल-मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुतः सर्वः स्वार्थं समीहते।’

चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्। वृक्षः अवदत्, ‘मानवाः अस्माकं छायायां विरमन्ति। अस्माकं फलानि खादन्ति, पुनः कुठारैः प्रहृत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्टं ददति। यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति। सर्वः स्वार्थं समीहते।’

शब्दार्थ : क्षुधार्ताय-भूखे के लिए। अकार्यम्-बुरा काम। समीहते-चाहते हैं। नदीजलम्-नदी का जल। मयि-मुझ में। प्रक्षालयन्ति-धोते हैं। विसृज्य-छोड़कर। निवर्तन्ते-चले जाते हैं।लौटते हैं। उपगम्य-पास जाकर। छायायाम्-छाया में विरमन्ति-विश्राम करते हैं। कुठारैः-कुल्हाड़ियों से। प्रहृत्य-प्रहार करके। ददति-देते हैं। छेदनम्-काटना। धर्मे-धर्म में।

सरलार्थ : बाघ बोला-‘अरे मूर्ख! भूखे के लिए कुछ भी बुरा नहीं होता है। सभी स्वार्थ की सिद्धि चाहते हैं।’ चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला, ‘ऐसा ही होता है, लोग मुझमें नहाते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल और मूत्र आदि डाल कर वापस लौट जाते हैं, वास्तव में सब स्वार्थ को ही (सिद्ध करना) चाहते हैं।’ चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। वृक्ष बोला, "मनुष्य हमारी छाया में ठहरते हैं। हमारे फलों को खाते हैं, फिर कुल्हाड़ियों से चोट मारकर हमें सदा कष्ट देते हैं। कहीं-कहीं तो काट डालते हैं। धर्म में धक्का (कष्ट) और पाप (करने) में पुण्य होता ही है।’

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Answered by ab295236
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Answer:

Kya h Bhai ye jokklkkll. ans nhi pta

jsos

Answered by sarojkumarisamoh
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शब्दार्थ : क्षुधार्ताय-भूखे के लिए। अकार्यम्-बुरा काम। समीहते-चाहते हैं। नदीजलम्-नदी का जल। मयि-मुझ में। प्रक्षालयन्ति-धोते हैं। विसृज्य-छोड़कर। निवर्तन्ते-चले जाते हैं।लौटते हैं। उपगम्य-पास जाकर। छायायाम्-छाया में विरमन्ति-विश्राम करते हैं। कुठारैः-कुल्हाड़ियों से। प्रहृत्य-प्रहार करके। ददति-देते हैं। छेदनम्-काटना। धर्मे-धर्म में।

सरलार्थ : बाघ बोला-‘अरे मूर्ख! भूखे के लिए कुछ भी बुरा नहीं होता है। सभी स्वार्थ की सिद्धि चाहते हैं।’ चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला, ‘ऐसा ही होता है, लोग मुझमें नहाते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल और मूत्र आदि डाल कर वापस लौट जाते हैं, वास्तव में सब स्वार्थ को ही (सिद्ध करना) चाहते हैं।’ चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। वृक्ष बोला, "मनुष्य हमारी छाया में ठहरते हैं। हमारे फलों को खाते हैं, फिर कुल्हाड़ियों से चोट मारकर हमें सदा कष्ट देते हैं। कहीं-कहीं तो काट डालते हैं। धर्म में धक्का (कष्ट) और पाप (करने) में पुण्य होता ही है।’

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