व्याकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी
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किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है
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जब कोई भी व्यक्ति कोई भी भाषा को सीखता है तो वह अनेक प्रकार की गलतियांँ करता है। ऐसी स्थिति में भाषा के नियमो की जानकारी होना आवश्यक है, क्योंकि भाषा नियम संचालित व्यवस्था है। भाषा के ये नियम ही बताते है कि कौनसा रूप शुद्ध है और कौन सा अशुद्ध तथा वो शुद्ध या अशुद्ध क्यों है।
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