व्याकरण में नैतिक शब्द योग का वर्णन होता है
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Two types of Grammar Is the
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सितंबर, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में गए और पूरी दुनिया अचंभे में पड़ गई, जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आरंभ करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि इससे जीवनशैली और चेतना में परिवर्तन आएगा तथा जलवायु परिवर्तन के मामले में भी मदद मिलेगी। भारतीय राजनयिक हलकों को भी नहीं पता था कि महासभा में इस तरह का कोई प्रस्ताव रखा जाना है।1 प्रस्ताव को पहले समर्थन देने वाला चीन था। अत में इसके पक्ष में व्यापक समर्थन आया, जिसमें विकसित, विकासशील, इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) देश तथा अन्य देश शामिल थे और इस तरह इतिहास रच दिया गया। पिछले चार वर्षों में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ी है। आखिर इसमें ऐसा क्या है कि इसे हाथोहाथ ले लिया गया? इसका कारण यह मान्यता है कि आज की दुनिया जिन कठिन प्रश्नों से जूझ रही है, उनके उत्तर प्राचीन भारतीय ज्ञान में निहित हैं।
योग में आम तौर पर आसन होते हैं, जो वास्तव में हठयोग होता है। यह योग के ही भीतर एक विशेष प्रक्रिया है, जो शरीर को युवा और निरोगी रखता है। लेकिन योग शरीर को स्वस्थ और मन को नियंत्रण में रखना भर नहीं होता बल्कि उससे बहुत अधिक होता है। हमें मन को नियंत्रण में क्यों रखना चाहिए? जब तक इसके पीछे कोई महान उद्देश्य नहीं है तब तक ऐसा करना व्यर्थ है। ‘योग’ शब्द का अर्थ ही है जोड़ना और योगाभ्यास हमें हमारी वास्तविक प्रकृति से जोड़ता है, जो सुखद एवं शाश्वत है तथा धरती पर हमारे सुख-दुख भरे अस्तित्व से बिल्कुल परे है।
भारत में योग का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। ऋग्वेद में योगियों के समान ऋषियों के उल्लेख से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता में पाई जाने वाली योगियों की मूर्तियों तक भारत में योग का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। उसके बाद उपनिषद आए, जिन्हें ‘योग उपनिषद’2 की संज्ञा दी गई है और उसके बाद महाभारत आया, जिसमें योग और योगी शब्द लगभग 900 बार आए हैं!3 उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उसमें भगवद्गीता भी है, जहां कृष्ण अर्जुन को योग की मूल संरचना समझाते हैं; वही संरचना, जिसकी व्याख्या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद (चतुर्योग) ने एक बार फिर की। अतः हम देखते हैं कि ईसा से लगभग 200 वर्ष पूर्व रचे गए प्राचीन पतंजलि योग सूत्र से भी बहुत पहले भारत में योग की परंपरा चली आ रही थी। योग का मूल्यांकन पतंजलि पर ही नहीं रुक गया। नवीं शताब्दी के बाद से नाथ संप्रदाय आया, जिसने योग परंपरा में हठयोग जोड़ दिया। इस प्रकार भारत में योग स्थिर नहीं रहा है बल्कि इसकी गतिशील एवं फलती-फूलती परंपरा रही है।
यदि कोई व्यक्ति योग दर्शन का व्यवस्थित प्रतिपादन समझना चाहता है तो निस्संदेह उसे पतंजलि के योग सूत्र का अध्ययन करना चाहिए। योग दर्शन के अनुसार पतंजलि ने कहा था कि “मानव प्रकृति के विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक तत्वों पर नियंत्रण द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का व्यवस्थित प्रयास” ही योग है।4 पतंजलि योग में बताए गए कैवल्य की इच्छा हर किसी को नहीं होती, लेकिन हर व्यक्ति आनंद की खोज में रहता है और कुछ लोग नैतिकता भरा जीवन भी जीना चाहते हैं। योग सुख और आनंद के साथ नैतिकता भरा जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है।
योग के आठ अंग (अष्टांग) हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनमें से पहले दो - यम एवं नियम - पूरी तरह आचरण और नैतिकता से संबंधित विषय संबंधित हैं। यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि इन्हें योग का सबसे कठिन चरण माना जाता है। इन आचरण संबंधी विषयों को सिद्ध करने के उपरांत प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि के उच्च एवं मानसिक अनुशासन से जुड़े चरण आसान हो जाते हैं। किंतु यदि कोई व्यक्ति इन दोनों में ही पारंगत नहीं हो पाता है तो उसके लिए योग की राह में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इससे पता चलता है कि नैतिकता और आचरण कितने महत्वपूर्ण हैं।