व्याख्या अलोपीदीन ने जिस सहारे को चट्टान समझ रखा था वह पैरों के नीचे से कह सकता हुआ मालूम हुआ स्वाभिमान और धन ऐश्वर्य को कड़ी चोट लगी किंतु अभी तक धन की शक्ति पर भरोसा था अपने मुख्तार से बोले लालची 1000 केनोट साहब को बैठे करें आप इस समय भूखे सही हो रहे हैं जिनमें हो रहे हैं
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अलोपीदीन ने जिस सहारे को चट्टान समझ रखा था, वह पैरों के नीचे खिसकता हुआ मालूम हुआ. स्वाभिमान और धन-ऐश्वर्य की कड़ी चोट लगी. किन्तु अभी तक धन की सांख्यिक शक्ति का पूरा भरोसा था. अपने मुख़्तार से बोले,‘लालाजी, एक हज़ार के नोट बाबू साहब की भेंट करो, आप इस समय भूखे सिंह हो रहे हैं.’
व्याख्या ⦂ ‘नमक का दरोगा’ कहानी का यह प्रसंग उस समय का है, जब दरोगा मुंशी वंशीधर ने पंडित अलोपदीन की अवैध नमक से भरी गाड़ियां पकड़ ली थीं और पंडित अलोपीदीन ने दरोगा को रिश्वत देकर मामले को निपटाना चाहा।
पंडित अलोपदीन ने जब दरोगा मुंशी बंशीधर को 1000 की रिश्वत का प्रलोभन दिया तो बंशीधर और भड़क गया और ईमानदार एवं कर्तव्य परायण मुंशी दरोगा अपने कर्तव्य से टस से मस नहीं हुआ। दरोगा बंशीधर पंडित की रिश्वत को अस्वीकार कर पंडित की अवैध नमक से भरी गाड़ियों को पंडित अलोपदीन सहित गिरफ्तार कर लिया।
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