व्याख्या कीजिए
ख) ऐसी मूढ़ता या मन की।
परिहरि राम-भगति-सुर सरिता आस करत
ओसकन की।
धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि
मति घन की।
नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि
होति लोचन की॥
Answers
ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।
धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
नहिं तहं सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की।
व्याख्या ➲ तुलसीदास जी कहते हैं कि मेरे इस मन की मूर्खता इस तरह की हो गई है कि यह मन राम की भक्ति रूपी विशाल पवित्र गंगा को छोड़कर सांसारिक सुख रुपी ओस के छोटे कणों की इच्छा करता है। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह जैसे कोई प्यासा चातक पक्षी धुएं के समूह को देख कर उसे बादल समझ ले और उसमें से जल पीने के लिए दौड़े, परंतु धुएं के समूह में ना उसे शीतलता प्राप्त होगी, ना ही जल बल्कि उसकी आँखों को नुकसान ही होगा। इसी तरह मेरा मन भी श्री राम की भक्ति को छोड़कर सांसारिक विषय वासनाओं में भटक रहा है और उनकी ओर आकर्षित हो रहा है।
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
Explanation:
I hope that helps you mark me brainlist