व्याख्या करेः
(क) राम नाम बिनु अरूझि मरै ।
(ख) कंचन माटी जानै ।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना ।
(घ)नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी ।
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Correct Answer:
राम नाम बिनु अरुझि मेरे ।
प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा" पद्य से लिया गया है जिसके रचयिता "गुरु नानक" जी हैं। कवि ने राम नाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि संसार-सागर से पार उतरने का सबसे सरल-सुगम उपाय राम के नाम को स्मरण करना है। जो व्यक्त ईश्वर के नाम को नहीं जपता है वह इस ससार के माया जाल में उलझकर मर जाता है ।
कंचन माटी जाने ।
प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक"गोधूली भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड प "जो नर दु:ख में दुख नहिं माने" पद से लिया गया है जिसके रचयिता सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु नानक जी हैं। इस पद में कवि ने बताया है कि जिस व्यक्ति को दुख-दुखी नहीं करता, जिसे सुख, स भय आदि प्रभावित नहीं करते हैं वह व्यक्ति दूसरे के सोना आदि धन को माटी के समान समझता वस्तुतः जिसकी सांसारिक इच्छा समाप्त ही जाती है वह व्यक्ति सोना को भी मिट्टी मानता है।
हरष सोक ते रहे नियारो, नहि मान अपमाना ।
प्रस्तुत पक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली' भाग-2 काव्य (पद्य) खण्ड के "जो नर दुख में दुख नहिं माने पद से ली गयी है जिसके रचयिता " गुरु नानक " जी है। गुरु नानक ने गुरु उपदेश की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस पर गुरु उपदेशों का प्रभाव पड़ता है उस व्यक्ति को, सुख-दुःख, हर्ष-शोक इत्यादि सांसारिक बाधाएँ प्रभावित नहीं करतीं । इस प्रकार के व्यक्ति को मान-अपमान का भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
नानक लीन भयी गोविन्द सो, ज्यों पानी संग पानी।
प्रस्तुत पद्याश हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के जा नर दुख में दुख नहिं माने" पद से लिया गया है जिसके रचयिता गुरु नानक जी हैं। इस पद्य में नांनक जी ने कहा है कि मैं नानक भगवान गोविन्द की ऐसी भक्ति में लीन होना. चाहता हूँ जैसे-नदियों का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है । वस्तुत: यथार्थ ईश्वर भक्ति हरि के नाम कीर्त्तन में लीन होना ही है तथा भक्ति की तल्लीनता वैसी हो जैसे- नदि का. पानी समुद्र के पानी में मिलकर समुद्र के पानी जैसा हो जाता है
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