Sociology, asked by momumomali1079, 10 months ago

व्याख्या करें -(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी। (ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे। (घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया।

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Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी :  

उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया निश्चित रूप से उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान लोग अपनी एकता को बचाने लगे थे उनका समान रूप से उत्पीड़न और दमन हुआ था। इस साझा अनुभव ने उन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया। वे यह जान गए थे कि विदेशी शासकों को एकजुट होकर ही देश से बाहर निकाला जा सकता है । उनकी इस भावना ने भी राष्ट्रवाद के उदय में सहायता पहुंचाई।  

(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया‌ :  भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में प्रथम विश्व युद्ध के योगदान का वर्णन इस प्रकार है :  

क) करों में  वृद्धि :  

पहले विश्व युद्ध के कारण रक्षा खर्च एकाएक बढ़ गया।इस खर्च को पूरा करने के लिए सरकार ने करों में वृद्धि कर दी। इसके अतिरिक्त सीमा शुल्क भी बढ़ा दिया गया। आयकर के रूप में नया कर भी लगा दिया गया।इससे जनता में रोष फैल गया जिसने राष्ट्रवाद को जन्म दिया।

(ख) कीमतों में वृद्धि :  

पहले विश्व युद्ध के दौरान खाद्य पदार्थों का भारी अभाव हो गया। फल स्वरूप कीमतें लगभग दोगुनी हो गई।  आम आदमी का जीवन दुखमय हो गया । अतः  लोग विदेशी प्रशासन से मुक्ति के बारे में सोचने लगे यह सोच राष्ट्रीय आंदोलन का आधार बनी।

(ग) सिपाहियों की जबरन भर्ती :  

विश्व युद्ध में अत्यधिक सैनिकों के मारे जाने के कारण सरकार को ज्यादा से ज्यादा सैनिकों की जरूरत थी। अतः  गांव से नौजवानों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया गया। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार के प्रति विशेष गुस्सा था।

(घ) भारतीय उद्योगपतियों में रोष :  

भारत में अब विदेशी पूंजी बड़े पैमाने पर लगाए जाने लगी। भारतीय उद्योगपति चाहते थे कि सरकार आयातों पर भारी कस्टम ड्यूटी लगाए तथा उन्हें सुविधाएं देकर भारतीय उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करें।अब  उन्हें भी आभास होने लगा कि केवल एक दृढ़ राष्ट्रवादी आंदोलन तथा एक स्वाधीन भारतीय सरकार के द्वारा ही सुरक्षा के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।

(ड़) मजदूरों तथा दस्तकारों में रोष :  

आर्थिक शोषण से पीड़ित बेरोज़गारी तथा महंगाई से पीड़ित मजदूर तथा दस्तकार भी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हुए थे । उनके लिए जीवन निर्वाह करना भी कठिन था। वे सोचने लगे कि यदि भूखा ही मरना है तो स्वदेशी सरकार की छाया में ही क्यों न मरा जाए। अतः वे स्वतंत्रा के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तत्पर हो उठे। इस तरह भारतीय समाज के सभी वर्ग अंग्रेजी सरकार की नीतियों से पीड़ित थे। अतः उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ कर दिया।  

(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे :

रॉलट एक्ट इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा 1990 में पारित किया गया। इस एक्ट को काला कानून के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम महायुद्ध के कारण भारत को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस समय में भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का प्रसार अंग्रेजी साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता था। अतः सरकार ने राष्ट्रीय आंदोलन का दमन करने के लिए रॉलट एक्ट पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को 2 साल तक बिना कैस चलाए नजरबंद करने का अधिकार मिल गया।इस प्रकार इस अधिनियम ने भारतीयों की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। वह किसी भी पल राजनीतिक बंदी बनाए जाने के डर से चिंतित रहने लगे। ऐसी अवस्था में इस एक्ट का विरोध होना स्वाभाविक ही था।

(घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया‌:  

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को जनता तक पहुंचाने के लिए महात्मा गांधी तथा मुस्लिम नेताओं ने सारे देश का दौरा किया। परिणाम स्वरूप शीघ्र ही आंदोलन जोर पकड़ने लगा। विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर दिया । जनता ने बीच चौराहों पर विदेशी वस्तुओं की होली जलाई। यह सभी गतिविधियां शांतिपूर्ण थी कि क्योंकि असहयोग आंदोलन अहिंसा पर आधारित था। दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा नामक स्थान पर बाज़ार से गुज़र रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया और भीड़ ने पुलिस थाने को आग लगा दी। इस हिंसात्मक घटना से दुखी होकर 12 फरवरी, 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला कर लिया। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।

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Answered by Anonymous
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Explanation:

समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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