व्याख्यामूलक प्रश्न :- (i) ऊो, तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहत सेनह तगा तै, नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न त्यागी। ज्यौं जल माहँ तेल की गागरी बूँद न ताकौ लागी। प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयो, दृष्टि न रूप परागी। 'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस पाठ से ली गई है?
(ख) इसके रचयिता कौन हैं?
(ग) उपरोक्त पंक्तियों का भवार्थ व्यक्त करें।
(घ) ऊधौ को बड़भागी क्यों कहा गया है?
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