वायु में शुद्धि की प्रक्रिया वनस्पतियों पर कैसे अवलंबित है?
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पानीवायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश ये सृष्टि के आधारभूत पञ्च महातत्व हैं। इनमें वायु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अथर्ववेद में वायु को प्राण कहा है।2 प्राणशक्ति प्रदान करने वाला वायु है।3 यह वायु पिता के समान पालक, बन्धु के समान धारक, पोषक और मित्रवत सुख देने वाला है। यह जीवन देता है।4 वायु अमरत्व की निधि है। वह हमें जीवन प्रदान करता है।5 संहिताओं में कहा गया है कि यदि अन्तरिक्ष को प्रदूषण से मुक्त करके शान्ति की कामना करते हो तो सर्वप्रथम वायु को प्रदूषणरहित करके, उसकी शान्ति अत्यावश्यक है।6 ऋग्वेद का ऋषि कामना करता है कि प्रदूषण-मुक्त कल्याणकारी वायु मेरे चारों ओर बहे।7 वायु नीचे द्वार वाले (स्तर वाले) मेघ को अन्तरिक्ष और पृथ्वी की ओर प्रेरित करता है, उससे यह वायु सब औषधियों, वनस्पतियों और प्राणियों का राजा है क्योंकि जैसे कोई कृषक फलने और फूलने के लिये यव (जौ) आदि को जल से सींचता है, वैसे इसके कारण उत्पन्न वर्षा सम्पूर्ण भूमि को तर करती है..