India Languages, asked by s1660khushi11617, 12 hours ago

वायु पर श्लोक संस्कृत में

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Answered by chanchalagarwal640
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Answer:

यथा लोके आकाशस्थितः आकाशे स्थितः नित्यं सदा वायुः सर्वत्र गच्छतीति सर्वत्रगः महान् परिमाणतः? तथा आकाशवत् सर्वगते मयि असंश्लेषेणैव स्थितानि इत्येवम् उपधारय विजानीहि।।एवं वायुः आकाशे इव मयि स्थितानि सर्वभूतानि स्थितिकाले तानि --,

Explanation:

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।9.6।। इस गुत्थी को सुलझाने का प्रयत्न कर रहे भ्रमित राजकुमार अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण एक सुन्दर एवं स्पष्ट दृष्टान्त देकर उसकी सहायता करते हैं। किसी ऐसी वस्तु की कल्पना कर सकना अत्यन्त कठिन है जो सर्वत्र विद्यमान है? जिसमें सबकी स्थिति है और फिर भी? वह स्वयं उन सब वस्तुओं के दोषों से लिप्त या बद्ध नहीं होती। सामान्य मनुष्य की बुद्धि इस ज्ञान की ऊँचाई तक सरलता से उड़ान नहीं भर सकती। शिष्य की ऐसी बुद्धि के लिये एक टेक या आश्रय के रूप में यहाँ एक अत्यन्त सुन्दर और आकर्षक उदाहरण प्रस्तुत किया गया है? जिसकी सहायता से स्वयं को ऊँचा उठाकर वह अपने ही परिच्छेदों के परे दृष्टिपात करके अनन्त तत्त्व के विस्तार का दर्शन कर सके।स्थूल कभी सूक्ष्म को सीमित नहीं कर सकता। जैसे किसी कवि ने गाया है? पाषाण की दीवारें कारागृह नहीं बनातीं? क्योंकि एक बन्दी के शरीर को वहाँ बन्दी बना लेने पर भी उसके विचार अपने मित्र और बन्धुओं के पास पहुँचने में नित्य मुक्त हैं? स्वतन्त्र हैं। स्थूल पाषाण की दीवारें उसके सूक्ष्म विचारों की उड़ान पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकतीं। यदि एक बार इस सिद्धांत को भली भांति समझ लें? तो यह दृष्टान्त अत्यन्त भाव व्यंजक बनकर अपने गूढ़ अभिप्रायों को प्रदर्शित कर देता है।वायु का बहना? घूर्णन करना और भंवर के रूप में वेग से घूमना यह सब कुछ एक आकाश में होता है। आकाश उन सबको आश्रय देकर उन्हें सर्वत्र व्याप्त किये रहता है? किन्तु वे किसी भी प्रकार से आकाश को सीमित नहीं करते।

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