Hindi, asked by saratsahu1969, 2 months ago

व्यायाम पर अनुच्छेद in 80 to 100 words​

Answers

Answered by nanditapsingh77
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प्रस्तावना:

मानव शरीर कर्म योनि व भोग योनि दोनों है । परन्तु अस्वस्थ शरीर न तो किसी प्रकार के कर्म ही कर सकता है और न ही किसी प्रकार के सुख भोग सकता है । अस्वस्थ व्यक्ति के लिए यह जीवन नीरस बन जाता है इसलिए मानव शरीर में कर्म व भोग दोनो के लिए स्वस्थ शरीर अनिवार्य है ।

केवल अच्छी चीजे खाने-पीने से शरीर हृष्ट-पुष्ट नही बनता अपितु शरीर स्वस्थ बनाने के लिए व्यायाम की नितान्त आवश्यकता है । मात्र अच्छी चीज खाकर व्यायाम के बिना यह शरीर व्याधियों का मन्दिर बन जाता है ।

व्यायाम की महत्ता:

कहा गया है: ”स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है ।” शरीर के अस्वस्थ होने से मानसिक सताप बढ़ता है और मस्तिष्क अस्वस्थ होने से शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न होने लगती हैं । प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ व तन्दरुस्त रहता है । अनेक प्रकार की व्याधियाँ दूर होती हैं । स्वस्थ शरीर से मानसिक प्रसन्नता बढ़ती है, चित्त को शान्ति मिलती है ।

व्यायाम से शरीर की पुष्टि, मुख की काति, माँस पेशियो के उभार का ठीक विभाजन, जराग्नि की तीव्रता, आलस्यहीनता, स्थिरता व शरीर का हलकापन महसूस होता है । व्यायाम करने से पाचन शक्ति बढ़ती है । भूख लगती है ।

शरीर सुडौल, सुगंठित एवं सुदृढ़ बन जाता है । शरीर के सभी अवयव अपना काम ठीक करते है जिससे शरीर मे स्फूर्ति व ताजगी आती है । व्यायाम से शरीर में एक नवीन आभा आती है जो उसके तेज को प्रकट करती है ।

शरीर सुन्दर दिखाई देता है और चेहरे पर नयी रौनक आती है । व्यायाम करने वाले व्यक्ति की आयु बढ़ती है । उसकी वृद्धावस्था में यौवन फूट पड़ता है । नीरोग शरीर कभी भी जीर्ण-शीर्ण नही होता है । व्यायाम की विधियां-व्यायाम करने की अनेक विधियों बतायीं गयी हैं । प्राचीनकाल में ऋषियों ने ‘योग’ एक ऐसी विधि निकाली थी जिससे शारीरिक व मानसिक व्यायाम के साथ आत्मा की अनुभूति भी होती है ।

योग के द्वारा साधक कई वर्षो तक जीवित रहते थे, जिनके प्रमाण शास्त्रों मे मिलते हैं । शास्त्रो में योग के चौरासी लाख आसनों का अन्वेक्षण किया गया है । योगासन से शरीर के सारे अवयव संचालित हो जाते हैं ।

प्राणायाम शारीरिक व मानसिक स्थिरता के लिए सर्वोत्तम व्यायाम है । ध्यान से मन की शान्ति व आत्मा की अनुभूति होती है । इस प्रकार योग के द्वारा हम शरीर के सभी अगो को हृष्ट-पुष्ट बना सकते है । खेल भी एक प्रकार का व्यायाम है । विभिन्न प्रकार के खेलो से शरीर क्रियांशील रहता है । खिलाड़ी के अंग-प्रत्यंग अत्यन्त गतिशील हो जाते हैं । रक्त सचार बढ़ता है ।

आजकल खेलों को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है । इससे एक ओर मनोरंजन होता है जिससे मस्तिष्क का विकास होता है, दूसरी ओर शरीर का व्यायाम भी होता है जिससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है । ‘प्रातःकालीन भ्रमण’ भी बहुत उत्तम व्यायाम है । प्रात: ब्रह्म महूर्त में उठ कर भ्रमण से शरीर में ताजगी व स्फूर्ति बनी रहती है ।

प्रात: के भ्रमण से शरीर के अंग तो क्रियाशील होते ही है, साथ ही साथ सुबह की वायु शरीर के लिए अमृत का काम करती है । शरीर का व्यायाम तो दिन भर के अन्य कामों से भी हो जाता है, परन्तु अमृत भर, वायु प्रात: ही मिल सकती है । प्रातःकाल के पश्चात् अनेक कारणों से वायु दूषित बन जाती है । शारीरिक व मानसिक श्रम भी व्यायाम है ।

एक किसान व मजदूर किसी प्रकार की कसरत नहीं करता है और न ही उसको कोई कसरत करने को आवश्यकता है, क्योंकि उनका दैनिक कार्य ही ऐसा है जिससे शरीर के सारे अवयव स्वत: क्रियाशील रहते है, इसलिए परिश्रम करना भी एक प्रकार का व्यायाम है ।

उससे शरीर स्वस्थ रहता है, इसलिए मेहनत करने वाले व्यक्ति को व्यायाम की आवश्यकता नही रहती । व्यायाम के सुझाव-जिस प्रकार शरीर के लिए खाना-पीना आवश्यक है उसी प्रकार व्यायाम भी अत्यन्त आवश्यक है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन विधिवत् व्यायाम करना चाहिए ।

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रातःकाल जल्दी उठना नितान्त आवश्यक है । उठकर भ्रमण करना, दौड़ लगाना, खुली हवा मे योगासन करना, स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक है । शरीर के सभी अंगों को संचालित करने के लिए किसी भी प्रकार की कसरत की जाए वह उत्तम है ।

आजकल खेलों का बहुत प्रचार है । रबेल प्रतियोगिता, में अवश्य भाग लेना चाहिए । उससे जहाँ शरीर को समुचित व्यायाम मिलेगा, वहाँ सामाजिक भावना का विकास भी होगा । दिन भर अपने कार्यो में जुटे रहना चाहिए क्योकि श्रम भी एक प्रकार का व्यायाम है ।

उपसंहार:

प्रत्येक मनुष्य सुखपूर्वक रहकर लम्बी आयु तक जीना चाहता है, किन्तु यह असम्भव नही है । प्रतिदिन विधिवत व्यायाम करने से यह सम्भव हो सकता है । इसलिए व्यायाम करने में असावधानी व आलस्य नही आने देना चाहिए । नियमित व्यायाम शरीर को हृष्ट-पुष्ट बना देता है ।

स्वस्थ शरीर मानव की सबसे बड़ी सम्पत्ति है । दुनिया की अन्य सम्पत्ति स्वस्थ शरीर के आधीन है । स्वस्थ शरीर से मनुष्य लाखों की सम्पत्ति जोड़ सकता है, इसलिए एक कवि ने कहा है: “नेम व्यायाम को नित कीजिए । दीर्घ जीवन का सुधा रस पीजिए ।।”

Answered by anishasingh3287
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प्रस्तावना:

मानव शरीर कर्म योनि व भोग योनि दोनों है । परन्तु अस्वस्थ शरीर न तो किसी प्रकार के कर्म ही कर सकता है और न ही किसी प्रकार के सुख भोग सकता है । अस्वस्थ व्यक्ति के लिए यह जीवन नीरस बन जाता है इसलिए मानव शरीर में कर्म व भोग दोनो के लिए स्वस्थ शरीर अनिवार्य है ।

केवल अच्छी चीजे खाने-पीने से शरीर हृष्ट-पुष्ट नही बनता अपितु शरीर स्वस्थ बनाने के लिए व्यायाम की नितान्त आवश्यकता है । मात्र अच्छी चीज खाकर व्यायाम के बिना यह शरीर व्याधियों का मन्दिर बन जाता है ।

व्यायाम की महत्ता:

कहा गया है: ”स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है ।” शरीर के अस्वस्थ होने से मानसिक सताप बढ़ता है और मस्तिष्क अस्वस्थ होने से शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न होने लगती हैं । प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ व तन्दरुस्त रहता है । अनेक प्रकार की व्याधियाँ दूर होती हैं । स्वस्थ शरीर से मानसिक प्रसन्नता बढ़ती है, चित्त को शान्ति मिलती है ।

व्यायाम से शरीर की पुष्टि, मुख की काति, माँस पेशियो के उभार का ठीक विभाजन, जराग्नि की तीव्रता, आलस्यहीनता, स्थिरता व शरीर का हलकापन महसूस होता है । व्यायाम करने से पाचन शक्ति बढ़ती है । भूख लगती है ।

उपसंहार:

प्रत्येक मनुष्य सुखपूर्वक रहकर लम्बी आयु तक जीना चाहता है, किन्तु यह असम्भव नही है । प्रतिदिन विधिवत व्यायाम करने से यह सम्भव हो सकता है । इसलिए व्यायाम करने में असावधानी व आलस्य नही आने देना चाहिए । नियमित व्यायाम शरीर को हृष्ट-पुष्ट बना देता है ।

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