२. व्यक्ति के जीवन में संतोष का मसुत महत्व है। संतापी व्यक्ति सुखी रहता है। असंतोष सब व्याधियों की बढ़ है। माना जा
ने कहा है कि धन-दौलत से कभी सत्ताध नहीं मिलता। संतोष रूपी धन मिलने पर समस्त वैभव धूल के समान प्रतीत होता है।
व्यक्ति जितना कि पन पात आता है, उतना ही उसमें उसतोष उपजता जाता है। यह असतोष मानसिक सन सार
है तो अनेक रोगों की जीवन व्यक्ति मेलामोसा जाता सायलीपी बताया गया है कि भावना पार
की प्राप्ति ने ही उसे सतय मिन जाता है। ने भी नाथ जता रोना चाहिए। हमें अपनी इच्छाओं को सीमित व्य
इत्ताएं हम पर हावी हो जाती है तो मारा मन असंतुष्ट से जाता ।। तासारिक वस्तएं हमें कभी सतोष नहीं दे सकती। मी
का संबंध सन से है। संतोष सबसे बड़ा धन है। इसके सम्मुख सीमा पायी. पण, पंसा सब व्यर्थ है।
किसी व्यक्ति के जीवन में संतोष का क्या पहनाया है।
संतोष का संबंध किससे है।
असताष की प्रवृत्ति रहने से क्या रोता है,
प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता
(a) गावाट के अनुसार- सापु जसा क्यों होना चाहिए। all answers
Answers
प्रस्तावना– आज भले ही संतोषी स्वभाव वाले व्यक्ति को मुर्ख और कायर कहकर हंसी उड़ाई जाय लेकिन संतोष ऐसा गुण हैं जो आज भी सामाजिक सुख शांति का आधार बन सकता हैं. असंतोष और लालसा ने श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को उपेक्षित कर दिया हैं. चारों ओर इर्ष्या, द्वेष और अस्वस्थ होड़ का बोलबाला हैं. परिणामस्वरूप मानव जीवन की सुख शान्ति नष्ट हो गयी हैं.
संसार की अर्थव्यवस्था में असंतोष– आज सारा संसार पूंजीवादी व्यवस्था को अपनाकर अधिक से अधिक धन कमाने की होड़ में लगा हुआ हैं उसकी मान्यता है. कैसे भी हो अधिक से अधिक धन कमाना चाहिए, धनोपार्जन में साधनों की पवित्रता अपवित्रता का कोई महत्व नहीं रहा हैं. रिश्वत लेकर, मादक पदार्थ बेचकर, भ्रष्टाचार कर टैक्स चोरी करके मिलावट करके, महंगा बेचकर धन कमाना ही लोगों का लक्ष्य हैं.
यही काला धन हैं. इससे ही लोग सुख और एश्वर्य का जीवन जीते हैं. इसमें से थोड़ा बहुत धार्मिक कार्यों में दान देकर अथवा सामाजिक संस्थाओं को देकर वे दानवता और उदार पुरुष का गौरव पाते हैं. इस संसार की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था दूषित हो गयी हैं. अनैतिक आचरणों से धन कमाना आज का शिष्टाचार बन गया हैं. एक ओर अधिक से अधिक धन बटोरने की होड़ मची हैं तो दूसरी ओर भुखमरी और घोर गरीबी हैं. ये दोनों पक्ष आज की अर्थव्यवस्था के दो पहलु हैं, दो चेहरे हैं. अमीर और अमीर बन रहा हैं. गरीब और गरीब होता जा रहा हैं.
असंतोष के कारण– सम्पूर्ण मानव जाति आज जिस स्थिति में पहुच गई हैं. इसका कारण कहीं बाहर नहीं हैं, स्वयं मनुष्य के मन में ही हैं. आज का मानव इतना स्वार्थी हो गया हैं कि उसे केवल अपना सुख ही दिखाई देता हैं. वह स्वयं अधिक से अधिक धन कमाकर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता हैं. फोबर्स नामक पत्रिका ने इस स्पर्द्धा को और बढ़ा दिया हैं. इस पत्रिका में विश्व के धनपतियों की सम्पूर्ण सम्पति का ब्यौरा होता हैं.
तथा उसी के अनुसार उन्हें श्रेणी प्रदान की जाती है. अतः सबसे ऊपर नाम लिखाने की होड़ में धनपतियों में आपाधापी मची हुई हैं. यह सम्पति असंतोष का कारण बनी हुई हैं. इसके अतिरिक्त घोर भौतिकवादी दृष्टिकोण भी असंतोष का कारण बना हुआ हैं. खाओ पियो मौज करो यही आज का जीवन दर्शन बन गया हैं. इसी कारण सारी नीति और मर्यादाएं भूलकर आदमी अधिक से अधिक धन और सुख सुविधाएं बटोरने में लगा हुआ हैं. कवि प्रकाश जैन के शब्दों में
हर ओर धोखा झूठ फरेब, हर आदमी टटोलता है दूसरे की जेब
संतोष में ही समाधान– इच्छाओं का अंत नहीं, तृष्णा कभी शांत नहीं होती, असंतुष्टि की दौड़ कभी खत्म नहीं होती, जो धन असहज रूप से आता हैं. वह कभी सुख शान्ति नहीं दे सकता, झूठ बोलकर, तनाव झेलकर अपराध भावना का बोझ ढोते हुए, न्याय, नीति, धर्म से विमुख होकर जो धन कमाया जाएगा, उससे चिंताएं, आशंकाए और भय ही मिलेगा सुख नहीं. इस सारे जंजाल से छुटकारा पाने का एक ही उपाय हैं संतोष की भावना.
उपसंहार– आज नहीं तो कल धन के दीवानेपन को अक्ल आएगी. धन समस्याओं को हल कर सकता हैं भौतिक सुख सुविधाओ को दिला सकता हैं, किन्तु मन की शान्ति तथा चिंताओं और शंकाओं से रहित जीवन धन से नहीं संतोष से ही प्राप्त हो सकता हैं. संतोषी सदा सुखी यह कथन आज भी प्रासंगिक हैं. असंतोषी तो सिर धुनता हैं तब संतोषी सुख की नीद सोता हैं.
Answer:
व्यक्ति के जीवन म सतोष का बत मह ह। सतोषी सखी रहता ह। असतोष सब ािधयो की जड़ ह। महाा कबीर न कहा ह िक धन-दौलत स कभी सतोष नही िमलता। सतोषपी धन िमलन पर सम वभव धल क समान तीत होता ह। िजतना अिधक अिधक धन पाता जाता ह उतना ही असतोष उपजता जाता ह। यह असतोष मानिसक तनाव उ करता ह जो अनक रोगो की जड़ ह। धन को उलझनो म फसाता जाता ह। साध को सतोषी बनाया गया ह ोिक भोजन मा की ा स उस सतोष िमल जाता ह। हम भी साध जसा होना चािहए। हम अपनी इाओ को सीिमत रखना चािहए। जब इाए हम पर हावी हो जाती ह तो हमारा मन सदा असत रहता ह। सासारक वए हम कभी सतोष नही द सकती। सतोष का सबध मन स ह। सतोष सबस बड़ा धन ह। इसक सख सोना-चादी, पया पसा थ ह।
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