व्यक्ति के जीवन में व्यक्ति के जीवन में धर्म और राष्ट्र की भूमिका निबंध बताइए
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Explanation:
धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।
Explanation:
लोगों को संगठित रखने में धर्म की निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। धर्म की वजह से प्राचीन काल से ही कई प्राचीन सभ्यताओं ने अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहे हैं। धर्म किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी स्तरों पर प्रभावित करता है और साथ ही धर्म किसी भी समाज में एकजुटता का एहसास भी दिलाता है। धर्म की वजह से लोगों की विचारधाराओं में समानता होती है और एक धर्म के लोग विश्वस्तर पर एक दूसरे से जुड़ाव महसूस करते हैं और सामूहिक उन्नति के लिए अग्रसर होते हैं।
‘धर्म एकता का माध्यम है’ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Dharm Ekta Ka Madhyam Hai in Hindi)
निबंध 1 (300 शब्द)
धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रसर करता है। सामाजिक एकता को बढ़ाना विश्व के सभी धर्मों की स्थापना का मूल उद्देश्य है। महात्मा बुद्ध ने भी धम्मं शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि का संदेश दिया। अर्थात् उन्होंने धर्म के शरण में और इस प्रकार संघ के शरण में अर्थात संगठित होने का आह्वान किया जो कि आपसी एकता एवं भाईचारे का परिचायक है।
धर्म का उद्देश्य अपने अनुयायियों को जीवन जीने के लिए जरूरी सभी गुणों से परिपूर्ण करते हुए एक ऐसा आधार प्रदान करना है जिससे वे एकता की भावना से संगठित होकर समाज की भलाई के लिए कार्य कर सकें। इन संदेशों का सार यह है कि हर मजहब या धर्म एकता का ही पाठ पढ़ाते हैं।