व्यक्ति की दो मूलभूत आदतेंहोती है। एक तो यह कक लोग हमारेगुणोोंकी प्रशोंसा करेंऔर हमारा आदर करेतथा दू सरे वेहम सेप्रेम करें। हमारी अनुपक्तथथकत मेंहमारा अभाव महसूस करेऔर ऐसा लगेकक उनके जीवन मेंहम कु छ महत्व रखतेहैं। इस प्रकार की प्रवृकियााँमनुष्य के जीवन मेंआगेबढ़नेतथा कु छ न कु छ करनेके कलए कनरोंतर प्रेररत करती रहती है। आपके ज़रा भी काययकी यकद ककसी नेसच्चेकदल सेप्रशोंसा की, तो आपका कदल कै सा क्तखल उठता है। इसके अलावा यकद कोई आपकी सलाह को कदल सेस्वीकार करके उस पर अमल करनेलगता है,, तो आपका मन फू ला नही ों समाता। कोई भी व्यक्ति ककतना भी अपनेआप मेंआत्मकवश्वासी और आत्मतुष्ट क्ोोंन कदखाई दें, अोंदर सेवो हमारी आपकी तरफ तारीफ और प्रशोंसा का, प्रोत्साहन का तथा स्नेह का भूखा होता है। व्यवहार कु शलता का पहला लक्षण यह हैकक आप दू सरोोंकी भावनाओोंको ठीक ठीक समझे, उसकी कद्र करें। इससेसामाकजक जीवन मेंव्यक्ति कवशेष की लोककप्रयता का दरवाजा खुलता है। मन को सोंतोष कमलता हैवह अलग। प्रशोंसा और प्रोत्साहन वस्तुतः कदव्य औषकि के समान है। देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति के गहन अोंतथथल मेंएक चेतन कचोंगारी ऐसी हैजो अपना सम्मान करना चाहती है। गौरव प्राप्त करनेके कलए आकु ल व्याकु ल रहती है। इस तड़पन की तृक्तप्त जहााँसेहोती है, वह उसेकप्रय लगनेलगती है। प्रशोंसा एक प्रकार का प्रोत्साहन है, एक सोंदेश है, जो प्राणी को साफ साफ बता देता हैकक उसेककस रूप मेंपसोंद ककया जाता है।। क्तखलाकड़योोंको कसखातेसमय जब कशक्षक हााँया शाबाश कहतेहैंतो वह उन्हेंप्रोत्साकहत करके उनके अोंग चालन प्रकिया पर अपनी स्वीकृ कत वाली मोहर लगा देतेहैं। फलस्वरूप क्तखलाड़ी अपनी प्रकिया में दक्ष बनता है। प्रोत्साकहत करनेका अवसर जब भी कमलेंउसेव्यि करनेसेचुका न जाए, इससेप्रशोंसक की प्रकतष्ठा बढ़ती है। इसके अकतररि इसी के बल पर आनेवालेदोषोोंका कनवारण भी हो जाता है। प्रोत्साहन और प्रशोंसा कशक्षण प्रकिया का एक अकत आवश्यक और व्यावहाररक अोंग कसद्ध हुआ है।
1 व्यक्ति को कौन सी मूल प्रवृकियााँभाती है?
2 व्यक्ति आगेबढ़नेके कलए ककस्सेप्रेररत होता है?
3 प्रशोंसा और प्रोत्साहन मनुष्य के कलए कदव्य औषकि ककस प्रकार है?
4 प्रोत्साहन और प्रशोंसा कशक्षा मैंककस प्रकार उपयोगी साकबत हो सकतेहैं?
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संसार में सर्वथा गुण-विहीन व्यक्ति कोई नहीं है। तलाश करने पर बुरा लगने वाले व्यक्ति में भी कुछ न कुछ गुण मिल सकते हैं। एक नव-विवाहिता के पति और श्वसुर दोनों उस पर हुकुम चलाया करते थे। भोली-भाली बेचारी पत्नी उस पर भी कभी अपनी खीझ भरी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती , किन्तु जब कभी उसके पति अथवा श्वसुर घर के छोटे-मोटे कामों को पूरा करने में उसका सहयोग करते तो पत्नी अपनी प्रसन्नता व्यक्त किए बिना और सम्मान दिए बिना नहीं रहती। इस तरह उसने उन दोनों को अपने अनुरूप करने में सफलता प्राप्त की। प्रशंसा और प्रोत्साहन के माध्यम से आगे बढ़ाना और उत्साहित करना जितना सरल है, उतना किसी अन्य प्रकार से संभव नहीं है। सकारात्मक प्रोत्साहन द्वारा व्यक्ति के वांछित आचरण में सुधार तभी आता है जब उसे कार्य की अवधि में ही दिया जाए। प्रोत्साहन परिवर्तनशील एवं सृजनात्मक होने चाहिएं। एक जैसे प्रोत्साहन अपना महत्त्व शून्य कर देते हैं।
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