व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए शिक्षा के महत्व का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए
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शिक्षा मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के साथ- साथ सामाजिक एंव आर्थिक विकास का मार्ग तय करती हैं। शिक्षा अज्ञानता का अँधियारा दूर कर ज्ञान की रोशनी फैलाती हैं। शिक्षा का उच्च स्तर समाज में जागरूकता को बढ़ावा देता हैं, तथा उसके आर्थिक एंव सामाजिक उत्थान में प्रेरक के रूप में कार्य करता हैं।
शिक्षा व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। व्यक्ति शिक्षित होगा तो समाज मे शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, जब समाज शिक्षित होगा तभी राष्ट्र का सर्वागींण विकास होगा।
लेकिन मुख्य प्रश्न पैदा होता हैं कि शिक्षा किस प्रकार की हों ? शिक्षा इस प्रकार की हो कि उससे व्यक्ति का चरित्र निर्माण हो सकें। उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, धार्मिक और जीवन के अनन्त विभिन्न क्षैत्रों की विवेकसम्मत जानकारी प्राप्त हो। साथ ही यह शिक्षा विवेकसम्मत हों, जिससे व्यक्ति अपने चरित्र का निर्माण कर सकें, और मानवीय उन्नति में सहायक हो सकें।
दुर्भाग्य से शिक्षा सर्वागीण विकास के बजाय जीवन के किसी एक क्षैत्र को केन्द्र बनाकर तैयार की जा रही हैं। जिससे व्यक्तिगत चरित्र के ह्वास के साथ साथ समाज, देश और मानव सभ्यता के लिए भी शुभ संकेत नहीं हैं।
इस प्रकार हमें शिक्षा प्रदान करना भी आवश्यक हैं साथ ही इस शिक्षा की गुणवता का भी पूर्णता के साथ ध्यान रखा जाना चाहिएं।