व्यक्तिवाद के सन्दर्भ में जेम्स मिल का सिद्धान्त क्या है?
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जेम्स मिल 'इंडोलोजी' की उस प्रवृत्ति के अग्रदूत थे जिसने संस्कृत भाषा, साहित्य, दर्शन, हिंदू धर्म, हिंदू समाज व्यवस्था और ब्राह्मणों की निंदा शुरू की। जेम्स मिल ने 1817 में ‘ब्रिटिश भारत के इतिहास’ में व्यवस्थित ढंग से रखा। इसे भारत का पहला प्रामाणिक इतिहास मान लिया गया। जेम्स मिल 1819 में कंपनी के ‘बोर्ड’ में नियुक्त हुए और दस वर्षों के भीतर ही भारत का संपूर्ण ब्रिटिश प्रशासन उनके अधीन आ गया। उनकी पुस्तक कंपनी सरकार के हर कर्मचारी को पढ़नी पड़ती थी। उसी आधार पर भारत का शासन चलता था। मिल भारत कभी नहीं आए। उन्होंने मनुस्मृति के एक भ्रष्ट अनुवाद और हालहेडकृत ‘ए कोड आॅफ गेंटू लॉज’ के प्रमाण पर हिंदू विरोधी, भारत विरोधी, ब्राह्मण विरोधी और संस्कृत विरोधी स्थापनाएं कर डालीं जो बहुत प्रभावी हुर्इं। इस कारण उन्हें साम्राज्यवादी इतिहासकार माना जाता है।
उन्होंने व्यापार, शिक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता, तथा कारागार अनुशासन पर बहुत लेख लिखे। परन्तु उनकी प्रमुख रचनाएँ तीन पुस्तकें थीं जिनके विषय थे- भारत का इतिहास, राजनीतिक अर्थशास्त्र के तत्व और मन का विश्लेषण। इतिहास ग्रंथ में उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारत पर विजय एवं शासन के संचालकों के व्यवहार की कड़ी आलोचना की। परिणामस्वरूप यह इंग्लैंड के इंडिया हाउस के अधिकारी और फिर संचालक नियुक्त कर दिए गए।
उन्होंने इंग्लैंड की राजनीति के दार्शनिक परिवर्तनवाद (philosophical redicalism) की स्थापना की और मताधिकार के विस्तृत विस्तार द्वारा सुराज्य की सुरक्षा का पक्ष लिया। उन्होंने प्रसिद्ध दार्शनिक बेंथम के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष का विकास किया और साहचर्यवाद को मानसिक यांत्रिकी का रूप देकर सर्वोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। उन्होंने सभी मानसिक घटनाओं को साहचर्य से और समस्त साहचर्य को अव्यवधान अर्थात एक साथ घटित होने से उत्पन्न प्रतिपादित किया।