व्यख्या करे, निर्मला तो सन्नाटे में आ गई! मालूम हुआ, किसी ने उसकी देह पर अंगारे डाल
दिये। मुंशीजी ने डाँटकर जियाराम को चुप करना चाहा, जियाराम निःशंक खड़ा
ईंट का जवाब पत्थर से देता रहा। यहाँ तक कि निर्मला को भी उस पर क्रोध आ
गया। यह कल का छोकरा, किसी काम का न काज का, यों खड़ा टर्रा रहा है;
जैसे घर भर का पालन-पोषण यही करता हो। त्योरियाँ चढ़ाकर बोली- बस, अब
बहुत हुआ ज
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itna bada qstn aur ptrs itne kam thoda toh badha
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